सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस को दीवानी मामलों को आपराधिक मामलों में बदलने की प्रवृत्ति पर कड़ी फटकार लगाई है। सोमवार को शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि उत्तर प्रदेश में कानून का शासन पूरी तरह ध्वस्त हो गया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दीवानी विवादों को आपराधिक मामलों में तब्दील करना अस्वीकार्य है।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ देबू सिंह और दीपक सिंह द्वारा उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और जांच अधिकारी को हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि दीवानी विवाद के मामले में आपराधिक मामला क्यों दर्ज किया गया?
“उत्तर प्रदेश में जो हो रहा है वह गलत है”: सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश में जो हो रहा है वह गलत है। दीवानी विवादों को नियमित रूप से आपराधिक मामलों में बदला जा रहा है, जो पूरी तरह से गलत है। सिर्फ पैसे न देने पर मामले को आपराधिक नहीं बनाया जा सकता।
जब वकील ने बताया कि एफआईआर इसलिए दर्ज की गई क्योंकि दीवानी मामला तय होने में समय लगता है, तो पीठ ने नाराजगी व्यक्त की। न्यायालय ने कहा कि जांच अधिकारी को कटघरे में खड़े होकर गवाही देनी चाहिए और बताना चाहिए कि कैसे मामले को आपराधिक बनाया गया।

पीठ ने आगे कहा कि इस तरह से आरोप पत्र दाखिल नहीं किया जा सकता। जांच अधिकारी को सबक सिखाया जाना चाहिए। सिर्फ इसलिए कि दीवानी मामले में समय लगता है, आपने आपराधिक मामला दर्ज कर आपराधिक कार्यवाही शुरू कर दी।
चेक बाउंस का मामला:
यह मामला मूल रूप से चेक बाउंस का था। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों अभियुक्तों के खिलाफ नोएडा के ट्रायल कोर्ट में लंबित आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी है, लेकिन स्पष्ट किया है कि उनके खिलाफ चेक बाउंस का मामला जारी रहेगा।
दोनों अभियुक्तों के खिलाफ नोएडा के सेक्टर 39 थाने में आईपीसी की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 506 (आपराधिक धमकी) और 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
याचिका के अनुसार, दोनों के पिता ने शिकायतकर्ता से 25 लाख रुपये उधार लिए थे और इसके बदले में 25 लाख का चेक जारी किया था। पैसे न लौटाने पर पुलिस ने शिकायत मिलने पर पिता के साथ-साथ दोनों याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भी आपराधिक मामला दर्ज कर लिया था, जिसे रद्द करने की मांग की गई है। हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई है।
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