
नैनीताल: उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने समान नागरिक संहिता (UCC) में लिव-इन संबंधों के अनिवार्य पंजीकरण को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता से सवाल किया कि इसमें रहस्य क्या है? मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि जब दो लोग बिना शादी के साथ रह रहे हैं और यह बात सब जानते हैं, तो इसमें किस निजता का हनन हो रहा है?
याचिकाकर्ता का तर्क:
देहरादून निवासी 23 वर्षीय जय त्रिपाठी ने याचिका दायर कर UCC में लिव-इन रिलेशन के अनिवार्य पंजीकरण को निजता का हनन बताया है. याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ऐसे संबंधों के पंजीकरण के लिए अनिवार्य प्रावधान करके “गपशप” को संस्थागत रूप दे रही है. याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के 2017 के एक फैसले का हवाला देते हुए निजता के अधिकार पर जोर दिया.
हाईकोर्ट की टिप्पणी:
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के तर्क का खंडन करते हुए कहा कि UCC किसी घोषणा का प्रावधान नहीं करती, बल्कि केवल पंजीकरण करने के लिए कहती है. खंडपीठ ने पूछा, “रहस्य क्या है? आप दोनों एक साथ रह रहे हैं, आपका पड़ोसी जानता है, समाज जानता है, दुनिया जानती है. फिर आप जिस गोपनीयता की बात कर रहे हैं, वह कहां है? क्या आप गुप्त रूप से किसी गुफा में रह रहे हैं? आप नागरिक समाज के बीच रह रहे हैं, बिना शादी के साथ रह रहे हैं, तो फिर किस निजता का हनन हो रहा है?”
अन्य याचिकाओं के साथ सुनवाई:
अल्मोड़ा में एक अंतरधार्मिक लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे युवक की हत्या का हवाला दिए जाने पर हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह लोगों को जागरूक करने के लिए कुछ करें. कोर्ट ने इस मामले को UCC को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है और कहा है कि अगर किसी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई होती है तो वह अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है. अगली सुनवाई 1 अप्रैल को होगी. केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किए गए हैं.