
नई दिल्ली: घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के क्रियान्वयन पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कड़ी फटकार लगाई है। न्यायालय ने इन राज्यों पर पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए रिपोर्ट दाखिल करने के लिए चार सप्ताह की मोहलत दी है। साथ ही चेतावनी भी दी है कि यदि अगली सुनवाई तक रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई तो जुर्माना दोगुना कर दिया जाएगा। मामले की अगली सुनवाई 25 मार्च को निर्धारित की गई है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने यह आदेश उस समय दिया जब याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने सुप्रीम कोर्ट के बार-बार निर्देश देने के बावजूद भी स्थिति रिपोर्ट दाखिल नहीं की है।
कौन से राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं डिफॉल्टर?
जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने रिपोर्ट दाखिल नहीं की है, उनमें आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, ओडिशा, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और असम शामिल हैं। केंद्र शासित प्रदेशों में दादर और नगर हवेली, दमन और दीव, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और लक्षद्वीप ने भी रिपोर्ट नहीं दी है।
जस्टिस नागरत्ना की सख्त टिप्पणी
जस्टिस नागरत्ना ने सख्त लहजे में कहा, “अगर आप रिपोर्ट दाखिल नहीं करते हैं, तो जुर्माना अगली बार दोगुना कर दिया जाएगा।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा कानून का सही ढंग से पालन और क्रियान्वयन सुनिश्चित करना केवल केंद्र सरकार का ही नहीं, बल्कि संबंधित राज्य सरकारों का भी कर्तव्य है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के आदेशों की अवहेलना
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 2 दिसंबर, 2024 को आदेश दिया था कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को घरेलू हिंसा कानून के क्रियान्वयन पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करनी चाहिए। 17 जनवरी को कोर्ट ने रिपोर्ट दाखिल करने की समय सीमा 14 फरवरी तक बढ़ा दी थी। इसके बावजूद कई राज्यों ने रिपोर्ट दाखिल नहीं की, जिस पर कोर्ट ने नाराजगी जताई।
याचिका में क्या मांगें हैं?
याचिका में महिलाओं के लिए सुरक्षा अधिकारियों, सेवा प्रदाताओं और आश्रय गृहों की पर्याप्त नियुक्ति की मांग की गई है, ताकि घरेलू हिंसा कानून का सही तरीके से पालन हो सके। याचिकाकर्ता का तर्क है कि कानून के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए पर्याप्त संसाधन और बुनियादी ढांचा होना आवश्यक है।
कानून के प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता क्यों?
घरेलू हिंसा एक गंभीर सामाजिक समस्या है जो महिलाओं के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालती है। घरेलू हिंसा कानून, 2005 महिलाओं को इस हिंसा से बचाने के लिए बनाया गया था। इस कानून के तहत, पीड़ित महिलाओं को कानूनी सहायता, सुरक्षा और पुनर्वास की सुविधा प्रदान की जाती है। हालांकि, कानून के प्रभावी क्रियान्वयन में कई चुनौतियां हैं, जिनमें जागरूकता की कमी, पर्याप्त संसाधनों का अभाव और सामाजिक रूढ़िवादिता शामिल हैं।
आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से उम्मीद है कि राज्य सरकारें घरेलू हिंसा कानून के क्रियान्वयन को लेकर अधिक गंभीर होंगी और आवश्यक कदम उठाएंगी। रिपोर्ट दाखिल करने के बाद, सुप्रीम कोर्ट स्थिति की समीक्षा करेगा और आगे के निर्देश जारी करेगा। यह मामला घरेलू हिंसा के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मजबूत संदेश दे सकता है। यह देखना होगा कि राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन किस प्रकार करती हैं और घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने में कितनी सफल होती हैं।