नई दिल्ली। पंजाब से पाकिस्तान की सीमा तक बहने वाली रावी नदी हर मानसून में केवल पानी ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती भी लेकर आती है। इसी गंभीर विषय को लेकर पंजाब के प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री स. कुलदीप सिंह धालीवाल ने बुधवार को नई दिल्ली में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल से मुलाकात की। इस मुलाकात का मुख्य उद्देश्य रावी नदी से उत्पन्न हो रहे बहुआयामी संकट से निपटने के लिए केंद्र सरकार से तत्काल वित्तीय सहायता की मांग करना था, ताकि हमारी जमीन, सुरक्षा ढांचे और देश को अवैध गतिविधियों से बचाया जा सके।
बैठक का मुख्य एजेंडा: एक नदी, तीन बड़े खतरे
मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने केंद्रीय मंत्री के समक्ष अमृतसर के अजनाला क्षेत्र की गंभीर स्थिति को विस्तार से रखा, जहां रावी नदी भारत और पाकिस्तान के बीच एक संवेदनशील अंतरराष्ट्रीय सीमा बनाती है। उन्होंने बताया कि हर साल भारी बाढ़ के दौरान यह नदी विकराल रूप धारण कर लेती है, जिससे तीन बड़े संकट एक साथ पैदा होते हैं:
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कृषि भूमि का विनाश: बाढ़ का सबसे पहला और सीधा असर इलाके के किसानों पर पड़ता है। नदी का तेज बहाव अपने साथ सैकड़ों एकड़ कीमती और उपजाऊ कृषि भूमि को बहा ले जाता है। यह किसानों के लिए केवल एक आर्थिक क्षति नहीं, बल्कि उनकी आजीविका पर सीधा प्रहार है, जिससे वे कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं।
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राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे को नुकसान: यह संकट केवल कृषि तक सीमित नहीं है। धालीवाल ने इस बात पर जोर दिया कि बाढ़ के कारण सीमा पर बनी सेना और सीमा सुरक्षा बल (BSF) की महत्वपूर्ण चौकियां भी गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इन चौकियों के बह जाने या कमजोर पड़ने से सीमा पर निगरानी प्रभावित होती है, जिससे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमा सुरक्षा बलों की परिचालन क्षमताओं पर सीधा असर पड़ता है।
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अवैध गतिविधियों और तस्करी को बढ़ावा: बाढ़ से उत्पन्न हुई अव्यवस्था का फायदा राष्ट्र-विरोधी तत्व उठाते हैं। जब सुरक्षा चौकियां क्षतिग्रस्त होती हैं और सुरक्षा बलों का ध्यान राहत और बचाव कार्यों पर केंद्रित होता है, तो सीमा पार से नशीले पदार्थों की तस्करी और अन्य अवैध गतिविधियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। धालीवाल ने स्पष्ट किया कि यह स्थिति न केवल पंजाब राज्य, बल्कि पूरे देश के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करती है।
क्या है पंजाब की मांग और प्रस्तावित समाधान?
इन गंभीर और आपस में जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिए पंजाब सरकार ने एक ठोस योजना का खाका तैयार किया है, जिसे लागू करने के लिए केंद्रीय फंड की आवश्यकता है। धालीवाल ने केंद्रीय मंत्री को सूचित किया कि इन दबावकारी मुद्दों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने और कम करने के लिए नदी के इस हिस्से में बड़े पैमाने पर मजबूती और सुरक्षा उपायों को अपनाना अनिवार्य है।
इस योजना में एक मजबूत बाढ़ नियंत्रण बुनियादी ढांचे का निर्माण शामिल है, जैसे नदी के तटबंधों को मजबूत करना, कंक्रीट के स्पर्स (ठोकरें) बनाना और नदी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए अन्य इंजीनियरिंग उपाय करना। इसके साथ ही, सीमा सुरक्षा प्रतिष्ठानों को और अधिक सुदृढ़ करने की भी योजना है। इसमें क्षतिग्रस्त चौकियों का पुनर्निर्माण, उन्हें अधिक ऊंचाई पर और बाढ़-रोधी सामग्री के साथ बनाना शामिल है, ताकि वे भविष्य में किसी भी प्राकृतिक आपदा का सामना कर सकें।
क्यों है यह मामला अत्यंत महत्वपूर्ण?
यह बैठक केवल एक राज्य द्वारा केंद्र से फंड मांगने का सामान्य मामला नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है। रावी नदी का यह हिस्सा रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। एक ओर जहां यह हमारे किसानों की समृद्धि का आधार है, वहीं दूसरी ओर यह देश की सुरक्षा की पहली पंक्ति भी है। इस क्षेत्र में किसी भी तरह की कमजोरी का सीधा फायदा दुश्मन देश और सीमा पार बैठे तस्कर उठा सकते हैं।
स. कुलदीप सिंह धालीवाल ने इस बात पर जोर दिया कि समय रहते इन परियोजनाओं को लागू करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि हम न केवल अपने किसानों की भूमि और आजीविका की रक्षा कर सकें, बल्कि अपनी सीमाओं को भी अभेद्य बना सकें। उन्होंने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार इस मामले की गंभीरता को समझेगी और पंजाब सरकार को आवश्यक धनराशि शीघ्र प्रदान करेगी, ताकि मानसून के अगले चक्र से पहले जमीनी स्तर पर काम शुरू किया जा सके। अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में है, और उसका निर्णय यह तय करेगा कि रावी नदी के किनारे बसने वाले लोगों और हमारी सीमाओं की सुरक्षा कितनी मजबूत होगी।
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