बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस की रणनीति चर्चा का विषय बनी हुई है. कमजोर जनाधार और सीमित संसाधनों के बावजूद, पार्टी के हालिया फैसलों ने अटकलें लगाई हैं कि क्या कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने पर विचार कर रही है.
कांग्रेस के तीन महत्वपूर्ण फैसले:
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बिहार प्रभारी में बदलाव: मोहन प्रकाश की जगह कृष्णा अल्लावारू को बिहार का प्रभारी बनाया गया है.
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कन्हैया कुमार को पदयात्रा की अनुमति: जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और भाकपा से कांग्रेस में शामिल हुए कन्हैया कुमार को राज्य में रोजगार के मुद्दे पर पदयात्रा करने की अनुमति दी गई है.
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प्रदेश अध्यक्ष में बदलाव: राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह की जगह विधायक राजेश कुमार को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया है.
इन फैसलों का क्या मतलब?
इन फैसलों को राजद से अलग एक स्वतंत्र पहचान बनाने की कांग्रेस की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि मोहन प्रकाश राजद के साथ सीट बंटवारे में आक्रामक रुख नहीं अपना पा रहे थे. कन्हैया कुमार को तेजस्वी यादव के मुकाबले खड़ा किया जा सकता है, क्योंकि रोजगार राजद का प्रमुख चुनावी मुद्दा है. अखिलेश प्रसाद सिंह की राजद पृष्ठभूमि को देखते हुए, राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस सीटों के बंटवारे पर अधिक मजबूती से बातचीत करना चाहती है. इसके अलावा, निर्दलीय सांसद पप्पू यादव के साथ गठबंधन की संभावना पर भी चर्चा हो रही है.

क्या कांग्रेस को मिलेगी मजबूती?
हालांकि, यह देखना बाकी है कि क्या ये प्रयास कांग्रेस को मजबूत करेंगे. 1990 के बाद से कांग्रेस लगातार नए प्रयोग करती रही है, लेकिन चुनावी नतीजे उत्साहजनक नहीं रहे हैं. 2010 में अकेले चुनाव लड़ने पर कांग्रेस को केवल चार सीटें मिली थीं. 2015 में राजद के साथ गठबंधन में 41 सीटों पर चुनाव लड़कर 27 सीटें जीती थीं. 2020 में 70 सीटों पर चुनाव लड़कर 19 सीटें जीती थीं.
क्या कांग्रेस अकेले चुनाव जीत सकती है?
कांग्रेस की जमीनी स्थिति और पिछले चुनावी प्रदर्शन को देखते हुए, यह कहना मुश्किल है कि पार्टी अकेले दम पर इतनी सीटें जीत पाएगी कि सरकार बनाने में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण हो. कांग्रेस का जनाधार कमजोर हुआ है और पार्टी के भीतर भी कई चुनौतियां हैं. प्रदेश अध्यक्षों का बार-बार बदलना और नेताओं का दल-बदल पार्टी की अस्थिरता को दर्शाता है. हालांकि नए प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार सभी को साथ लेकर चलने का दावा कर रहे हैं, लेकिन पार्टी के भीतर गुटबाजी अभी भी जारी है.
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