नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के एक व्यक्ति को पत्नी की हत्या के दोषी ठहराने के फैसले को पलट कर बरी कर दिया है। हत्या के लिए लगभग 22 वर्ष पहले दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को बरी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे दोषी ठहराना न्याय का मजाक था और यह इस अदालत का कर्तव्य है कि उसमें सुधार करे। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने कहा कि निचली अदालतों के फैसले पर सवाल खड़े किये कि मरने से पहले उसकी पत्नी को आखिरी बार उसी के साथ देखा गया था, इसी आधार पर उसे दोषी ठहरा दिया गया। शीर्ष अदालत ने यह फैसला गुना महतो नामक व्यक्ति की अपील पर सुनाया जिसने झारखंड हाई कोर्ट के 2004 के फैसले को चुनौती दी थी।
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सुप्रीम कोर्ट की डबल बैंच ने कहा कि अदालतें यह भूल गईं कि उसकी पत्नी के पिता ने अपने बयान में कहा था कि आरोपित के पिता ने खुद उन्हें घटना से दो दिन पहले उनकी बेटी के लापता होने के बारे में जानकारी दी थी। संदेह और भ्रम आरोपित को दोषी ठहराने का आधार नहीं हो सकते और आरोपित को अपराध से जोड़ने वाली परिस्थितियां बिल्कुल भी साबित नहीं हुईं। हाई कोर्ट ने उसे दोषी ठहराने और उम्रकैद की सजा सुनाने के ट्रायल कोर्ट के 2001 के फैसले को बरकरार रखा था। इस मामले में याचिकाकर्ता की पत्नी की अगस्त, 1988 में हत्या हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने गुना महतो को बरी कर दोनों निचली अदालतों के आदेशों को खारिज कर दिया।