देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने राज्य के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (MSME) क्षेत्र में सर्विस सेक्टर को नई गति देने के लिए एक बड़ा और दूरगामी फैसला लिया है। बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि राज्य के सभी मिनी औद्योगिक आस्थानों (Mini Industrial Estates) में सर्विस सेक्टर के लिए पांच प्रतिशत प्लॉट और शेड आरक्षित किए जाएंगे। इस कदम का मुख्य उद्देश्य छोटे और सूक्ष्म उद्यमियों को औद्योगिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी का अवसर देना और पहाड़ी क्षेत्रों में रोजगार सृजित कर पलायन को थामना है।
पहाड़ों में उद्योग लगाने की राह हुई आसान
उत्तराखंड के नौ जिले पूर्णतः पहाड़ी हैं, जहाँ उद्यमियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती भूमि की कमी रही है। कई उद्यमी इच्छा होने के बावजूद जमीन की अनुपलब्धता के कारण उद्योग स्थापित नहीं कर पाते थे। सरकार का यह निर्णय ऐसे उद्यमियों के लिए एक सुनहरा अवसर लेकर आया है। अब सीमित भूमि के बावजूद, छोटे उद्यमी मिनी औद्योगिक आस्थानों में आरक्षित प्लॉट और शेड का लाभ उठाकर अपना कारोबार शुरू कर सकेंगे। उद्यमियों का मानना है कि इस फैसले से न केवल स्थानीय उद्यमियों को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि बाहरी निवेशकों के लिए भी उत्तराखंड एक आकर्षक गंतव्य बनेगा।
पलायन पर लगेगी लगाम, स्थानीय अर्थव्यवस्था होगी मजबूत
यह औद्योगिक निवेश, राज्य की सबसे बड़ी समस्या ‘पलायन’ को थामने की दिशा में एक अहम भूमिका निभा सकता है। उत्तराखंड के भौगोलिक परिदृश्य को देखते हुए, विशेषकर चमोली, रुद्रप्रयाग, पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, चंपावत, अल्मोड़ा और बागेश्वर जैसे पहाड़ी जिलों में फार्मास्युटिकल, टिंबर, कागज और फूड प्रोसेसिंग जैसे उद्योगों के लिए अपार संभावनाएं हैं। इन उद्योगों को स्थानीय संसाधनों के आधार पर विकसित किया जा सकता है, जिससे वहां की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी और युवाओं को अपने घर के पास ही रोजगार के अवसर मिलेंगे।
राज्य में MSME की स्थिति और योगदान
वर्तमान में, उत्तराखंड में 89,877 से अधिक MSME इकाइयां संचालित हो रही हैं, जिनमें 17,189.37 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है और लगभग 4.45 लाख लोगों को रोजगार मिला है। ये उद्योग न केवल उत्पादन करते हैं, बल्कि सेवा क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सरकार के इस नए फैसले से सर्विस सेक्टर में प्रतिस्पर्धा और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा, जिससे राज्य की औद्योगिक संरचना और भी मजबूत होगी।
यह प्रयास औद्योगिक विकास को समावेशी और संतुलित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। नीति निर्माताओं का मानना है कि इससे केवल राजधानी और मैदानी क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि पहाड़ी जनपदों में भी एक सकारात्मक औद्योगिक माहौल बनेगा, जो राज्य के समग्र विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।
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