नई दिल्ली। यह सिर्फ धोखाधड़ी नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा के साथ एक दुस्साहसिक खिलवाड़ है। पंजाब के सीमावर्ती जिले फिरोजपुर में एक मां-बेटे की जोड़ी ने कथित तौर पर राजस्व अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर भारतीय वायुसेना की एक पूरी हवाई पट्टी ही बेच डाली। यह कोई मामूली जमीन नहीं, बल्कि द्वितीय विश्व युद्ध के समय बनी एक रणनीतिक हवाई पट्टी थी, जिसका इस्तेमाल भारतीय वायुसेना ने 1962, 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों में किया था। इस驚天 घोटाले के 28 साल बाद, अब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के कड़े हस्तक्षेप के बाद इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई है।
क्या है 28 साल पुराना यह घोटाला?
यह घोटाला फिरोजपुर जिले के फत्तूवाला गांव की उस जमीन से जुड़ा है, जो पाकिस्तान सीमा के बेहद करीब स्थित है। इस जमीन को 1945 में ब्रिटिश प्रशासन ने एक हवाई पट्टी बनाने के लिए अधिग्रहित किया था। लेकिन 1997 में, आरोपी उषा अंसल और उनके बेटे नवीन चंद ने खुद को इस जमीन का मालिक बताते हुए दस्तावेजों में जालसाजी कर इसे बेच दिया। जांच में सामने आया है कि उन्होंने यह सब राजस्व विभाग के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की मदद से किया।
यह मामला तब सामने आया जब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने इस पर स्वतः संज्ञान लेते हुए पंजाब विजिलेंस ब्यूरो को जांच के आदेश दिए। विजिलेंस ब्यूरो ने 20 जून को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसके आधार पर अब उषा अंसल, नवीन चंद और संबंधित राजस्व अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी, फर्जी दस्तावेज तैयार करने और आपराधिक साजिश जैसी गंभीर धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।
कैसे हुआ मिलीभगत और लापरवाही का खेल?
इस पूरे घोटाले में राजस्व अधिकारियों की भूमिका बेहद संदिग्ध पाई गई है। इस मामले को सबसे पहले 2021 में एक सेवानिवृत्त राजस्व अधिकारी निशान सिंह ने उठाया था, लेकिन उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद, हलवारा एयरफोर्स स्टेशन के कमांडेंट ने भी फिरोजपुर के जिला उपायुक्त (डीसी) को पत्र लिखकर इस जमीन पर वायुसेना के मालिकाना हक का दावा किया, लेकिन तब भी प्रशासन ने चुप्पी साधे रखी।
प्रशासन की इस लापरवाही से तंग आकर निशान सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति हरजीत सिंह ब्रार ने जिला उपायुक्त को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि इस तरह की लापरवाही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर सकती है। याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि जिस व्यक्ति (मदन मोहन लाल) के नाम पर जमीन थी, उनकी मृत्यु 1991 में ही हो चुकी थी, लेकिन जमीन की बिक्री फर्जी तरीके से 1997 में दिखाई गई। इतना ही नहीं, 2009-10 की जमाबंदी (राजस्व रिकॉर्ड) में कई नए नाम जोड़ दिए गए, जबकि सैन्य विभाग ने यह जमीन कभी किसी को ट्रांसफर ही नहीं की थी।
अब इस एफआईआर के बाद उम्मीद है कि इस पूरे घोटाले की परतें खुलेंगी और यह पता चलेगा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ करने वाले इस खेल में और कौन-कौन से बड़े अधिकारी शामिल थे।
Pls read:Punjab: अकाली दल ने AAP सरकार पर खोला मोर्चा, मजीठिया केस को बताया ‘बदले की राजनीति’