
मुंबई: निर्देशक लक्ष्मण उतेकर की फ़िल्म ‘छावा’ छत्रपति संभाजी महाराज की वीरगाथा को पर्दे पर जीवंत करती है। शिवाजी सावंत के मराठी उपन्यास पर आधारित यह फ़िल्म औरंगज़ेब के शासनकाल में संभाजी महाराज के साहस और संघर्ष को दर्शाती है।
कहानी:
शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद औरंगज़ेब दक्कन पर अपना शासन स्थापित करने का सपना देखता है, लेकिन संभाजी महाराज बुरहानपुर पर हमला कर देते हैं। नौ साल तक औरंगज़ेब संभाजी को पकड़ने की कोशिश करता है, पर हर बार नाकाम रहता है।
फ़िल्म का विश्लेषण:
उतेकर ने मराठा योद्धाओं के जुनून को प्रभावशाली ढंग से दिखाया है, लेकिन कुछ पात्रों और सोयराबाई के प्रकरण को संक्षिप्त रूप से दिखाने से कहानी कुछ कमज़ोर हो जाती है। फ़िल्म का क्लाइमेक्स दमदार है, जो दर्द और गर्व का मिलाजुला अहसास देता है। एआर रहमान का संगीत कर्णप्रिय है, लेकिन ढोल-ताशे की कमी खलती है। संवादों में मराठी भाषा का अभाव भी अखरता है।
संभाजी और कवि कलश के बीच कविताओं की प्रतियोगिता और औरंगज़ेब के साथ संवाद यादगार हैं। छायांकन बेहतरीन है, खासकर गुरिल्ला युद्ध के दृश्यों में।
अभिनय:
विक्की कौशल ने संभाजी महाराज के किरदार के साथ पूरा न्याय किया है। उन्होंने योद्धा, नेता और बंदी, हर रूप को जीवंत किया है। रश्मिका मंदाना, अक्षय खन्ना और विनीत कुमार सिंह ने भी प्रभावशाली अभिनय किया है, लेकिन आशुतोष राणा, डायना पेंटी और दिव्या दत्ता जैसे कलाकारों का उपयोग ठीक से नहीं हो पाया है।
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