– अगले हफ्ते संसद में पेश होने की उम्मीद
नई दिल्ली: देश में लोकसभा और विधानसभा समेत सभी चुनाव एक साथ कराने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक को मंजूरी दे दी। सरकार इस विधेयक को अगले हफ्ते संसद में पेश कर सकती है। इससे पहले, कैबिनेट ने पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट को भी मंजूरी दी थी।
विधेयक का उद्देश्य:
इस विधेयक का उद्देश्य लोकसभा, विधानसभा, शहरी निकाय और पंचायत चुनावों को एक साथ 100 दिनों के भीतर कराना है। सरकार का मानना है कि इससे समय और धन की बचत होगी, प्रशासनिक तंत्र पर दबाव कम होगा, सुरक्षा बलों को राहत मिलेगी और विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा। बार-बार चुनाव होने से सरकारी कामकाज भी प्रभावित होता है, जिसे इस कदम से रोका जा सकेगा।
आम सहमति की ज़रूरत:
पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने ज़ोर दिया था कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनाना ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा किसी एक दल के हित का नहीं, बल्कि पूरे देश के हित में है। उनके अनुसार, अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इससे देश की जीडीपी में 1 से 1.5 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने की सराहना:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट के फैसले का स्वागत करते हुए इसे भारतीय लोकतंत्र को मज़बूत करने की दिशा में एक अहम कदम बताया है।
विधेयक के संभावित लाभ:
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धन की बचत: बार-बार चुनाव कराने में होने वाले खर्च में कमी आएगी।
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समय की बचत: चुनाव प्रक्रिया में लगने वाले समय की बचत होगी, जिसका उपयोग विकास कार्यों में किया जा सकेगा।
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प्रशासनिक दक्षता: प्रशासनिक तंत्र पर दबाव कम होगा और वे बेहतर तरीके से काम कर पाएंगे।
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सुरक्षा बलों को राहत: सुरक्षा बलों की तैनाती बार-बार नहीं करनी पड़ेगी, जिससे उन्हें अन्य ज़रूरी कामों के लिए समय मिलेगा।
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विकास कार्यों पर ज़ोर: सरकार का ध्यान विकास कार्यों पर केंद्रित रहेगा और चुनावी राजनीति से ध्यान नहीं भटकेगा।
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जनता को राहत: बार-बार चुनाव होने से जनता को होने वाली परेशानी से निजात मिलेगी।
विधेयक के संभावित चुनौतियां:
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राजनीतिक सहमति: सभी राजनीतिक दलों के बीच इस मुद्दे पर सहमति बनाना एक बड़ी चुनौती होगी।
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संवैधानिक संशोधन: ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा, जिसके लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी।
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लॉजिस्टिक चुनौतियां: इतने बड़े पैमाने पर एक साथ चुनाव कराने में कई लॉजिस्टिक चुनौतियां आएंगी।
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क्षेत्रीय दलों का विरोध: कुछ क्षेत्रीय दल इस कदम का विरोध कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनके हित प्रभावित होंगे।
आगे की राह:
सरकार इस विधेयक को संसद में पेश करने की तैयारी कर रही है। देखना होगा कि विपक्षी दल इस पर क्या रुख अपनाते हैं। अगर यह विधेयक पारित हो जाता है तो यह भारतीय चुनाव प्रक्रिया में एक ऐतिहासिक बदलाव होगा।
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