नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सत्तारूढ़ दलों को सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल से अपने राजनीतिक विरोधियों की बुद्धिमता को कुचलने की इजाजत देकर देश लोकतंत्र खोने का जोखिम नहीं उठा सकता। तमिलनाडु में एक रोजगार योजना को लेकर द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) और अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) की क्रमिक सरकारों के बीच चल रहे टकराव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यह कड़ी टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश को रद कर दिया, जिसमें तमिलनाडु सरकार ने ‘ग्राम स्तरीय कार्यकर्ता’ पदनाम करने का आदेश दिया था, इस पग को ‘मक्कल नाला पनियालारगल’ (एमएनपी) के रूप में जाना जाता है।
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दरअसल, एम करुणानिधि के नेतृत्व वाली पूर्व द्रमुक सरकार ने राज्य भर में 12,617 ग्राम पंचायतों में शिक्षित युवाओं को रोजगार देने के लिए ‘मक्कल नाला पनियालारगल’ योजना शुरू की थी। हालांकि, द्रमुक सरकार के बाद सत्ता में आई अन्नाद्रमुक सरकार ने 1991 में इस योजना को समाप्त कर दिया था। द्रमुक सरकार ने एक बार फिर 1997 में सत्ता में आने के बाद इस योजना को लागू कर दिया, जिसे एक बार फिर अन्नाद्रमुक ने 2001 में सत्ता में आने पर पर समाप्त कर दिया। यह सिलसिला 2006 और 2011 में भी चलता रहा था
मंगलवार को सुनाए गए फैसले में जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि रिकार्ड के अनुसार जब भी योजना को छोड़ने या समाप्त करने का निर्णय लिया गया, वह केवल राजनीतिक कारणों से लिया गया और इस बारे में कोई ठोस या वैध कारण नहीं बताया गया। पीठ ने कहा कि राजनीतिक दलों को सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल से अपने राजनीतिक विरोधियों की बुद्धिमता को खत्म करने की अनुमति देकर हम अपने देश में लोकतंत्र को खोने का जोखिम नहीं उठा सकते।