नई दिल्ली
देश में बुनियादी ढांचे और औद्योगिक विकास को नई रफ्तार देने के उद्देश्य से केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक बड़ा फैसला लिया है। बुधवार को हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में कुल 19,919 करोड़ रुपये की चार प्रमुख परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाई गई है। इन परियोजनाओं का उद्देश्य न केवल औद्योगिक क्षमता को बढ़ाना है बल्कि महत्वपूर्ण तकनीकों में भारत को आत्मनिर्भर बनाना भी है। इस मंजूरी में सबसे अहम ‘रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट मैन्युफैक्चरिंग स्कीम’ शामिल है, जो भविष्य की तकनीक और रक्षा क्षेत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
सात सालों में खर्च होंगे 7,280 करोड़ रुपये
कैबिनेट द्वारा मंजूर की गई रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट (REPM) योजना के तहत अगले सात वर्षों में 7,280 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा। सरकार का लक्ष्य इस योजना के माध्यम से आयात पर निर्भरता को कम करना है। भारी उद्योग मंत्रालय के अनुसार, इस पहल का मुख्य उद्देश्य भारत में प्रति वर्ष 6,000 मीट्रिक टन (MTPA) की क्षमता वाली इंटीग्रेटेड रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट निर्माण सुविधा स्थापित करना है। सरकार का मानना है कि इस कदम से भारत वैश्विक बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी बनकर उभरेगा और घरेलू जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होगा।
अत्याधुनिक तकनीक में होगा इस्तेमाल
रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट को दुनिया के सबसे मजबूत स्थायी चुंबकों में गिना जाता है। इनका उपयोग वर्तमान समय की सबसे आधुनिक और महत्वपूर्ण तकनीकों में किया जाता है। इलेक्ट्रिक वाहनों (EV), रिन्यूएबल एनर्जी प्रोजेक्ट्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, एयरोस्पेस और रक्षा उपकरणों के निर्माण में इनकी भूमिका अनिवार्य होती है। इस योजना के तहत रेयर अर्थ ऑक्साइड को मेटल में, मेटल को एलॉय में और अंततः एलॉय को तैयार चुंबक में बदलने की पूरी प्रक्रिया देश के भीतर ही विकसित की जाएगी। इसके लिए वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के जरिए पांच कंपनियों या लाभार्थियों का चयन किया जाएगा, जिनमें से प्रत्येक को 1,200 एमटीपीए तक की उत्पादन क्षमता आवंटित की जाएगी।
चीन के एकाधिकार को मिलेगी चुनौती
वर्तमान में रेयर अर्थ मैग्नेट की वैश्विक सप्लाई चेन पर चीन का एकतरफा दबदबा है। चीन ने अपनी सख्त लाइसेंसिंग प्रणाली और भू-राजनीतिक नीतियों के जरिए इस बाजार को नियंत्रित कर रखा है। भारत सरकार की यह योजना इसी एकाधिकार को तोड़ने और सप्लाई चेन में विविधता लाने की एक रणनीतिक कोशिश है।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस संदर्भ में जानकारी देते हुए बताया कि भारत के पास भी इन खनिजों का भंडार मौजूद है। उन्होंने बताया कि ओडिशा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गोवा और गुजरात की तटीय रेखाओं के साथ-साथ गुजरात और महाराष्ट्र के पहाड़ी क्षेत्रों में रेयर अर्थ के डिपॉजिट पाए जाते हैं। हालांकि, इन खनिजों का खनन और रिफाइनिंग एक जटिल प्रक्रिया है।
जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर काम करेगा भारत
अश्विनी वैष्णव ने स्पष्ट किया कि रेयर अर्थ्स का महत्व अब केवल व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका गहरा भू-राजनीतिक और रणनीतिक महत्व भी है। भारत इस दिशा में अकेले आगे बढ़ने के बजाय अपने सहयोगी देशों के साथ मिलकर काम करेगा। योजना के तहत भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ सहयोग बढ़ाएगा। ऑस्ट्रेलिया के पास रेयर अर्थ्स के विशाल भंडार हैं जिनका अभी तक दोहन नहीं किया गया है, जबकि जापान के पास इससे जुड़ी उन्नत तकनीक उपलब्ध है। हाल ही में नेशनल क्रिटिकल मिनरल्स मिशन को भी दुनिया भर से आवश्यक सामग्री प्राप्त करने की अनुमति दी गई थी, जो इस दिशा में एक और बड़ा कदम है।