रोहड़ू (शिमला): क्रिकेट विश्व कप जीतकर देश का मान बढ़ाने वाली भारतीय महिला टीम की तेज गेंदबाज रेणुका ठाकुर जल्द ही अपने गृह नगर लौट रही हैं. हाटकोटी मंदिर में माथा टेकने के बाद वह अपने पैतृक गांव पारसा पहुंचेंगी, जहां उनके परिवारजन उनके भव्य नागरिक अभिनंदन की तैयारी कर रहे हैं.
रेणुका की वापसी पर उनकी माता सुनीता ठाकुर बेहद गौरवान्वित महसूस कर रही हैं, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उनकी प्रशंसा के बाद. सुनीता का कहना है कि प्रधानमंत्री ने जिस तरह एक सिंगल पेरेंट के संघर्ष और मेहनत को समझा और उसे सराहा, उससे न केवल हिमाचल प्रदेश, बल्कि पूरे देश के एकल अभिभावकों को प्रेरणा मिलेगी.
पहले बेटी ने देश को सम्मान दिलाया और अब प्रधानमंत्री की सराहना ने उनके संघर्ष के दौर के सारे दर्द को खत्म कर दिया है. सुनीता ने बताया कि रेणुका 9 नवंबर को पारसा पहुंच रही हैं.
शिमला जिले के रोहड़ू उपमंडल के पारसा गांव की निवासी रेणुका ठाकुर ने हाल ही में प्रधानमंत्री कार्यालय दिल्ली में नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. इस दौरान प्रधानमंत्री ने रेणुका की मां सुनीता की जमकर तारीफ की और उनके संघर्ष को पूरे देश के सामने उजागर किया. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि रेणुका को इस मुकाम तक पहुंचाने में उनकी मां का योगदान अविस्मरणीय है. उन्होंने एक एकल अभिभावक के रूप में अथक परिश्रम किया है.
प्रधानमंत्री ने बताया कि वे 1998 से 2003 तक हिमाचल में भारतीय जनता पार्टी के प्रभारी रह चुके हैं और पहाड़ों पर लोगों की मेहनत व संघर्ष दोनों को अच्छी तरह समझते हैं.
1500 रुपये में की बच्चों की परवरिश
रेणुका के पिता केहर सिंह ठाकुर का निधन 1999 में हो गया था. उनके जाने के बाद घर का आर्थिक सहारा छिन गया, लेकिन मां सुनीता ने हार नहीं मानी. उस समय सुनीता ठाकुर जल शक्ति विभाग में दैनिक वेतनभोगी के रूप में काम करती थीं और महीने के मात्र 1500 रुपये कमाती थीं. इन्हीं पैसों से उन्हें अपने दो बच्चों की परवरिश करनी थी.
सूखी रोटियां खाकर बेटी को बनाया क्रिकेटर
सुनीता ने कभी भी अपने बच्चों को पैसों की कमी महसूस नहीं होने दी. बेटी को क्रिकेटर बनाने के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने एसडीओ से पैसे उधार भी लिए. कई बार खुद सूखी रोटियां खाईं, लेकिन बेटी को हिमाचल प्रदेश क्रिकेट अकादमी (एचपीसीए) भेजा और उसकी हर जरूरत को पूरा किया. रेणुका ठाकुर जब केवल तीन-चार साल की थीं, तब वह कपड़े के बाल और लकड़ी के बल्ले से खेलती थीं, और आज वह देश की स्टार गेंदबाज हैं.
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