नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को अपनी पहली और बेहद सशक्त प्रतिक्रिया दी। नई दिल्ली में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने किसी देश का नाम लिए बिना, परोक्ष रूप से स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अपने किसानों, मछुआरों और डेयरी किसानों के हितों से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करेगा, भले ही इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई भी राजनीतिक या आर्थिक कीमत चुकानी पड़े।
प्रधानमंत्री मोदी ‘प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन शताब्दी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन’ में बोल रहे थे। इस मंच से उन्होंने देश के कृषि समुदाय को आश्वस्त करते हुए कहा, “हमारे लिए, हमारे किसानों का हित सर्वोच्च प्राथमिकता है। भारत किसानों, मछुआरों और डेयरी किसानों के हितों से कभी समझौता नहीं करेगा।” अपने इरादों को और मजबूती से रखते हुए उन्होंने कहा, “मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं, मुझे इसके लिए भारी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं। आज, भारत देश के किसानों, मछुआरों और डेयरी किसानों के लिए दृढ़ता से खड़ा है।”
राजनीतिक विश्लेषक प्रधानमंत्री के इस बयान को अमेरिका की व्यापारिक धमकियों पर भारत के दृढ़ और आत्मनिर्भर रुख के तौर पर देख रहे हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब वैश्विक व्यापार में संरक्षणवादी नीतियां बढ़ रही हैं और भारत पर भी अपनी बाजार नीतियों को बदलने का दबाव बनाया जा रहा है।
एम.एस. स्वामीनाथन को किया याद, बताए पुराने अनुभव
इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के कृषि क्रांति के जनक, प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने प्रोफेसर स्वामीनाथन को ‘भारत माता का सच्चा सपूत’ बताते हुए कहा कि कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनका योगदान किसी एक युग या क्षेत्र तक सीमित नहीं रहता। उन्होंने विज्ञान को जनसेवा का माध्यम बनाया और देश की खाद्य सुरक्षा को अपने जीवन का ध्येय बना लिया।
प्रधानमंत्री ने प्रोफेसर स्वामीनाथन के साथ अपने पुराने जुड़ाव को भी याद किया। उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल का जिक्र करते हुए कहा, “गुजरात के शुरुआती हालात काफी चुनौतीपूर्ण थे। सूखे और चक्रवातों के कारण कृषि संकट में थी और कच्छ का रेगिस्तान फैल रहा था। उस समय हमने ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ (Soil Health Card) पर काम शुरू किया था।” उन्होंने बताया कि तब प्रोफेसर स्वामीनाथन ने इस पहल में गहरी रुचि दिखाई थी और खुलकर अपने सुझावों से उनका मार्गदर्शन किया था। प्रधानमंत्री ने इस पहल की जबरदस्त सफलता का श्रेय प्रोफेसर स्वामीनाथन के योगदान को दिया।
कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री का यह भाषण दो प्रमुख संदेश देता है – एक तरफ अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के अडिग व्यापारिक रुख का संकेत और दूसरी तरफ देश के कृषि वैज्ञानिकों और किसानों के योगदान के प्रति गहरा सम्मान।
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