नई दिल्ली। इंग्लैंड के खिलाफ महत्वपूर्ण टेस्ट सीरीज के निर्णायक मुकाबले से जसप्रीत बुमराह की अनुपस्थिति ने भारतीय क्रिकेट में एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। आधिकारिक तौर पर इसे “कार्यभार प्रबंधन” (Workload Management) का नाम दिया गया, लेकिन पर्दे के पीछे से आ रही विरोधाभासी खबरें और टीम प्रबंधन के बदलते बयानों ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह मामला अब सिर्फ एक खिलाड़ी के आराम का नहीं, बल्कि इस बात का बन गया है कि टीम में अंतिम फैसला किसका होता है – खिलाड़ी का या टीम मैनेजमेंट का।
बयानों के जाल में उलझी सच्चाई
इस पूरे प्रकरण की नींव सीरीज शुरू होने से पहले ही रख दी गई थी, जब मुख्य चयनकर्ता अजित अगरकर ने कहा था कि बुमराह कार्यभार प्रबंधन के तहत इंग्लैंड में सिर्फ तीन टेस्ट मैच ही खेलेंगे। बुमराह ने लीड्स, लॉर्ड्स और मैनचेस्टर में खेला और बर्मिंघम में आराम किया। लेकिन जब ओवल में पांचवें और निर्णायक टेस्ट की बारी आई, तो कहानी उलझ गई।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, कप्तान शुभमन गिल और मुख्य कोच गौतम गंभीर चाहते थे कि बुमराह इस crucial मैच में खेलें। टीम ने आखिरी समय तक उनका इंतजार किया, लेकिन बुमराह अपने तीन मैच खेलने के फैसले पर अडिग रहे, जिसके बाद उन्हें शुक्रवार को टीम से रिलीज कर दिया गया।
इस पूरे घटनाक्रम में विरोधाभास तब और गहरा गया जब टीम के अलग-अलग कोचों ने अलग-अलग बातें कहीं:
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29 जुलाई: बल्लेबाजी कोच सितांशु कोटक ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा, “बुमराह फिट हैं। उन्होंने पिछले मैच में सिर्फ एक पारी में गेंदबाजी की थी। मुख्य कोच, फिजियो और कप्तान उनको खिलाने पर चर्चा करेंगे।” इससे यह संकेत मिला कि फैसला टीम मैनेजमेंट के हाथ में है।
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गुरुवार (फैसले के बाद): सहायक कोच रेयान टेन डोएशे ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि सिर्फ तीन मैच खेलने का निर्णय खुद बुमराह का था, न कि टीम प्रबंधन का।
अनुत्तरित प्रश्न जो चुभ रहे हैं
इन बदलते बयानों ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनका जवाब भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों को चाहिए:
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खिलाड़ी या मैनेजमेंट, बॉस कौन? एक सूत्र ने सवाल उठाया, “आखिर कोई क्रिकेटर कैसे यह फैसला ले सकता है कि वह कितने मैच खेलेगा? यह फैसला तो टीम प्रबंधन और फिजियो की रिपोर्ट के आधार पर होना चाहिए।”
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आखिरी समय तक इंतजार क्यों? अगर यह पहले से तय था कि बुमराह तीन ही मैच खेलेंगे, तो उन्हें मैनचेस्टर टेस्ट के बाद ही रिलीज क्यों नहीं किया गया? वह ओवल में टीम के अभ्यास सत्र में क्यों शामिल हुए?
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टीम भावना का अभाव? इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स चोटिल होने के बावजूद अपनी टीम का मनोबल बढ़ाने के लिए डगआउट में मौजूद हैं। ऐसे में बुमराह सीरीज के निर्णायक मैच में टीम के साथ क्यों नहीं रुक सकते थे?
आगे की राह और कार्यभार की चुनौती
इंग्लैंड दौरे पर 31 वर्षीय बुमराह ने तीन मैचों में 119.4 ओवर फेंके और 14 महत्वपूर्ण विकेट लिए। लेकिन अब टीम प्रबंधन के सामने उनकी फिटनेस और उपलब्धता को लेकर बड़ी चुनौती है। भारत का आने वाला शेड्यूल बेहद व्यस्त है:
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एशिया कप (T20): यूएई में, 29 सितंबर को फाइनल।
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वेस्टइंडीज टेस्ट सीरीज (घरेलू): पहला टेस्ट 2 अक्टूबर से शुरू (एशिया कप खत्म होने के 3 दिन बाद)।
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दक्षिण अफ्रीका टेस्ट सीरीज (घरेलू): नवंबर में।
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टी-20 विश्व कप: अगले साल भारत में।
अब टीम को यह तय करना होगा कि बुमराह को टी-20 में प्राथमिकता देनी है या टेस्ट मैचों के लिए बचाकर रखना है। क्या उन्हें वेस्टइंडीज जैसी अपेक्षाकृत कमजोर टीम के खिलाफ आराम देकर सीधे दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ उतारा जाएगा?
हालांकि, इन सभी रणनीतिक सवालों से बड़ा सवाल यह है कि यह फैसला कौन लेगा – मुख्य चयनकर्ता अजीत अगरकर और कोच गौतम गंभीर, या फिर जसप्रीत बुमराह खुद अपनी शर्तों पर अपनी उपलब्धता तय करेंगे? इस एक घटना ने भारतीय क्रिकेट के प्रशासनिक ढांचे और टीम के भीतर शक्ति संतुलन पर एक गंभीर बहस छेड़ दी है।
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