नई दिल्ली/मॉस्को। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दो अमेरिकी परमाणु पनडुब्बियों को तैनात करने के दावे के बाद रूस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। रूसी संसद (ड्यूमा) के एक वरिष्ठ सदस्य ने न केवल ट्रंप के बयान को खारिज किया, बल्कि यह कहकर सनसनी फैला दी कि अमेरिकी पनडुब्बियां पहले से ही रूस के निशाने पर हैं। इस जुबानी जंग ने दोनों परमाणु शक्तियों के बीच पहले से मौजूद तनाव को और बढ़ा दिया है।
ट्रंप ने क्या दिया था बयान?
यह पूरा विवाद शुक्रवार (01 अगस्त, 2025) को डोनाल्ड ट्रंप के एक सोशल मीडिया पोस्ट से शुरू हुआ। ट्रंप ने अपने प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर लिखा कि उन्होंने पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के “बेहद भड़काऊ बयानों” के जवाब में कथित तौर पर “उचित क्षेत्रों” में अमेरिकी पनडुब्बियों को फिर से तैनात करने का आदेश दिया था। मेदवेदेव हाल के दिनों में पश्चिमी देशों के खिलाफ अपने आक्रामक और परमाणु युद्ध की धमकियों वाले बयानों को लेकर चर्चा में रहे हैं।
रूसी सांसद का आक्रामक जवाब
ट्रंप के इस दावे पर रूस की ओर से तत्काल और आक्रामक प्रतिक्रिया आई। रूसी ड्यूमा के सदस्य विक्टर वोडोलात्स्की ने कहा कि रूस को ट्रंप के इस बयान पर कोई खास प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि रूस की नौसैनिक क्षमता अमेरिका से कहीं बेहतर है।
वोडोलात्स्की ने कहा, “दुनिया के महासागरों में रूसी पनडुब्बियों की संख्या अमेरिकी पनडुब्बियों से बहुत ज्यादा है। जिन पनडुब्बियों को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भेजने का आदेश दिया है, वे लंबे समय से हमारे नियंत्रण में हैं।”
उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर सीधी चेतावनी देते हुए कहा, “दोनों अमेरिकी पनडुब्बियों को रवाना होने दीजिए, वे लंबे समय से निशाने पर हैं।”
हालांकि, अपने आक्रामक रुख के साथ ही वोडोलात्स्की ने शांति की भी अपील की। उन्होंने कहा, “रूस और अमेरिका के बीच एक मौलिक समझौता होना चाहिए ताकि पूरी दुनिया शांत हो जाए और तृतीय विश्व युद्ध की शुरुआत के बारे में बात करना बंद कर दे।”
विशेषज्ञों की राय: बयान को गंभीरता से न लें
इस बीच, कुछ विशेषज्ञ इस बयानबाजी को राजनीतिक स्टंट से ज्यादा कुछ नहीं मान रहे हैं। रूस के प्रमुख विदेश मामलों के विशेषज्ञ और ‘ग्लोबल अफेयर्स’ पत्रिका के प्रधान संपादक फ्योदोर लुक्यानोव ने कहा कि ट्रंप के परमाणु पनडुब्बी संबंधी बयान को फिलहाल गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। उनका मानना है कि यह बयान घरेलू राजनीति और अपनी मजबूत छवि पेश करने की कोशिश का हिस्सा हो सकता है।
यह जुबानी जंग भले ही तात्कालिक सैन्य टकराव में न बदले, लेकिन यह अमेरिका और रूस के बीच बढ़ते अविश्वास और खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके तनाव को स्पष्ट रूप से दर्शाती है। यह घटनाक्रम दिखाता है कि दोनों देशों के बीच संवाद की कमी है और छोटी-सी बयानबाजी भी बड़े वैश्विक संकट की आशंका पैदा कर सकती है।
Pls read:US: भारत-रूस तेल सौदे पर पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप का बड़ा दावा, भारत ने दिया सधा हुआ जवाब