देहरादून।
उत्तराखंड सरकार ने बाघ संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक और अनूठा कदम उठाया है। अंतरराष्ट्रीय टाइगर दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घोषणा की कि प्रदेश में एक समर्पित ‘टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स’ का गठन किया जाएगा, जिसमें अग्निवीरों को सीधी तैनाती दी जाएगी। इस विशेष बल के लिए प्रस्तावित 81 पदों पर केवल अग्निवीरों की ही भर्ती की जाएगी।
मुख्यमंत्री धामी ने इस पहल को दोहरा लाभ देने वाला बताया। उन्होंने कहा, “इससे न केवल राज्य में बाघ संरक्षण के प्रयासों को अभूतपूर्व मजबूती मिलेगी, बल्कि ‘अग्निवीर’ के रूप में देश सेवा पूरी कर चुके प्रशिक्षित और अनुशासित युवाओं को रोजगार के बेहतर अवसर भी प्राप्त होंगे।” यह कदम अग्निवीरों को सेवायोजित करने की दिशा में सरकार की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। इसके साथ ही, सरकार उन्हें अन्य सरकारी सेवाओं में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने के लिए एक नीति भी बना रही है।
अवैध शिकार और वन्यजीव अपराधों पर लगेगी लगाम
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस फोर्स की स्थापना का मुख्य उद्देश्य बाघों के संरक्षण के लक्ष्य को प्राप्त करना और उनके अवैध शिकार पर पूरी तरह से रोक लगाना है। इस बल में शामिल अग्निवीर जैसे प्रशिक्षित जवान वन क्षेत्रों में नियमित गश्त करेंगे, खुफिया जानकारी एकत्र करेंगे और शिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करेंगे।
यह फोर्स केवल बाघों के शिकार तक ही सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यह वन और वन्यजीव से संबंधित अन्य अपराधों जैसे लकड़ी की तस्करी, अवैध खनन और वन भूमि पर अतिक्रमण को रोकने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
आधुनिक तकनीक से लैस होगी फोर्स
मुख्यमंत्री ने बताया कि यह फोर्स मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन में भी एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगी। अक्सर बाघ आबादी वाले क्षेत्रों में आ जाते हैं, जिससे संघर्ष की स्थिति पैदा होती है। यह फोर्स ऐसी स्थितियों को संभालने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित होगी, ताकि इंसानों और वन्यजीवों, दोनों को कोई नुकसान न हो।
इस बल को अत्याधुनिक निगरानी तकनीकों से लैस किया जाएगा, जिसमें ड्रोन, थर्मल इमेजिंग कैमरे और जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम शामिल हैं। इससे उनकी कार्य दक्षता बढ़ेगी और वे घने जंगलों में भी प्रभावी ढंग से निगरानी कर सकेंगे।
मुख्यमंत्री ने विश्वास जताया कि अग्निवीरों की भर्ती से स्थानीय समुदायों की भी संरक्षण प्रयासों में भागीदारी बढ़ेगी, जिससे एक सकारात्मक माहौल बनेगा। उन्होंने कहा कि यदि उत्तराखंड का यह मॉडल सफल होता है, तो इसे देश के अन्य बाघ अभयारण्यों और संरक्षित क्षेत्रों में भी एक मिसाल के तौर पर अपनाया जा सकता है, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर बाघ संरक्षण को एक नई दिशा मिलेगी।
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