लंदन। रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदने को लेकर पश्चिमी देशों की आलोचना का भारत ने ब्रिटेन में जोरदार और दो टूक जवाब दिया है। ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त विक्रम दोराईस्वामी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को बंद नहीं कर सकता। उन्होंने पश्चिमी देशों के दोहरे मापदंड पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि जो देश खुद रूस से व्यापार कर रहे हैं, उन्हें भारत को उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं है।
एक ब्रिटिश रेडियो स्टेशन ‘टाइम्स रेडियो’ को दिए साक्षात्कार में विक्रम दोराईस्वामी ने भारत के पक्ष को मजबूती से रखा। उन्होंने कहा, “यूरोप के कई देश खुद रूस से रेयर अर्थ मेटल (दुर्लभ धातु) समेत अनेक ऊर्जा उत्पाद खरीद रहे हैं और वे हमें रूस से व्यापार न करने की सलाह देते हैं। क्या यह थोड़ा अजीब नहीं लगता?”
आर्थिक मजबूरियों और ऐतिहासिक संबंधों का दिया हवाला
उच्चायुक्त ने भारत की आर्थिक स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा, “दुनिया में तेल की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता और आयातक है। हम अपनी तेल की 80 प्रतिशत से अधिक मांग दूसरे देशों से आयात करके पूरी करते हैं। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? क्या हम अपनी अर्थव्यवस्था को बंद कर दें?” उन्होंने बताया कि 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस पर लगे प्रतिबंधों के बीच रूस ने भारत को काफी कम दाम में तेल की पेशकश की, जो भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए एक तार्किक विकल्प था।
भारत और रूस के ऐतिहासिक संबंधों का जिक्र करते हुए उन्होंने पश्चिमी देशों को आईना दिखाया। उन्होंने कहा, “दोनों देशों के बीच सुरक्षा संबंध दशकों पुराने हैं। यह उस समय से हैं जब पश्चिमी देश हमें हथियार देने को राजी नहीं थे और हमारे पड़ोसी देशों को बड़े पैमाने पर हथियार भेज रहे थे, जिनकी मदद से हम पर हमला किया गया। उस मुश्किल समय में रूस ने भारत का साथ दिया था।”
युद्ध पर भारत का रुख स्पष्ट
विक्रम दोराईस्वामी ने यह भी कहा कि कई पश्चिमी देश अपनी सहूलियत के लिए उन देशों से रिश्ते बनाते हैं जो भारत के लिए मुश्किलें खड़ी करते हैं, लेकिन भारत ने कभी उन पर सवाल नहीं उठाया। रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख को दोहराते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही कह चुके हैं कि “यह युद्ध का युग नहीं है” और भारत भी यही चाहता है कि यह संघर्ष जल्द से जल्द समाप्त हो। इस बयान के जरिए उन्होंने यह संदेश दिया कि भारत अपनी विदेश नीति अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर तय करता है और किसी बाहरी दबाव में नहीं आएगा।
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