Punjab: मजीठिया पर केस: क्या 2003 की ‘गलती’ दोहरा रही है मान सरकार? अकाली दल को मिला संजीवनी का मौका – The Hill News

Punjab: मजीठिया पर केस: क्या 2003 की ‘गलती’ दोहरा रही है मान सरकार? अकाली दल को मिला संजीवनी का मौका

चंडीगढ़। पंजाब की राजनीति में इतिहास खुद को दोहराता नजर आ रहा है, और राजनीतिक गलियारों में यह सवाल जोर-शोर से पूछा जा रहा है कि क्या आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार वही गलती कर रही है, जो 2003 में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने की थी और जिसका खामियाजा उसे सत्ता गंवाकर भुगतना पड़ा था। यह पूरी बहस शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया पर आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किए जाने के बाद शुरू हुई है। इस कार्रवाई ने जहां ‘आप’ सरकार के भ्रष्टाचार-विरोधी एजेंडे को धार दी है, वहीं राजनीतिक हाशिये पर चल रहे शिरोमणि अकाली दल को एक नई ‘संजीवनी’ दे दी है।

हाशिये से मुख्यधारा की ओर अकाली दल

साल 2017 के विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद से ही शिरोमणि अकाली दल लगातार राजनीतिक पतन की ओर अग्रसर था। पार्टी अपनी पारंपरिक जमीन खो रही थी और तीन कृषि कानूनों के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ दशकों पुराना गठबंधन टूटने के बाद उसकी मुश्किलें और भी बढ़ गई थीं। पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं में निराशा का माहौल था। लेकिन 25 जून को बिक्रम सिंह मजीठिया पर विजिलेंस ब्यूरो द्वारा एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद से पंजाब की राजनीति में एक नाटकीय मोड़ आया है। जो अकाली दल बिखरा हुआ और निष्क्रिय नजर आ रहा था, वह अचानक सड़कों पर उतर आया है और आक्रामक विरोध प्रदर्शन कर रहा है।

क्या है 2003 का ऐतिहासिक सबक?

मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम की तुलना सीधे तौर पर 2003 से की जा रही है। उस समय कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने तत्कालीन पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल पर आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया था। 2004 में, रोपड़ में एक पेशी के दौरान बादल पिता-पुत्र को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। इस गिरफ्तारी के दौरान पुलिस और अकाली कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पें हुईं, जिसमें कई अकाली नेता घायल हुए।

कैप्टन सरकार ने इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई के रूप में पेश किया, लेकिन अकाली दल ने इसे “पंथ और सिख नेतृत्व पर हमला” और “प्रतिशोध की राजनीति” का एक बड़ा उदाहरण बना दिया। इस घटना ने अकाली दल के कैडर में एक नई जान फूंक दी। निराश और घर बैठे कार्यकर्ता सड़कों पर आ गए और पार्टी के झंडे तले एकजुट होने लगे। कैप्टन अमरिंदर सिंह इस उभरती हुई अकाली एकजुटता और सहानुभूति की लहर को भांपने में असफल रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि 2007 के विधानसभा चुनावों में अकाली दल-भाजपा गठबंधन ने शानदार वापसी की और कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया।

कमोवेश वही स्थिति, वही रणनीति

आज लगभग दो दशक बाद, परिस्थितियां काफी हद तक वैसी ही बनती दिख रही हैं। ‘आप’ सरकार ने मजीठिया पर कार्रवाई की, लेकिन सरकार के मंत्रियों के बयानों में विरोधाभास ने इस कार्रवाई पर सवाल खड़े कर दिए। मंत्री लगातार यह कहते रहे कि गिरफ्तारी ड्रग्स मामले में हुई है, जबकि विजिलेंस ने पर्चा आय से अधिक संपत्ति का दर्ज किया है। इस भ्रम ने अकाली दल को यह कहने का मौका दे दिया है कि सरकार किसी भी तरह से मजीठिया को फंसाना चाहती है।

बुधवार को जब मजीठिया की अदालत में पेशी थी, तो पुलिस ने सुखबीर बादल समेत अकाली दल के कई वरिष्ठ नेताओं को हिरासत में ले लिया और राज्य भर में अकाली नेताओं को नजरबंद कर दिया। पुलिस की इस कार्रवाई ने आग में घी का काम किया। जो अकाली कार्यकर्ता वर्षों से निराश होकर घर बैठा था, वह भी अब बाहर आने लगा है और इसे सरकार का दमन बता रहा है।

शिरोमणि अकाली दल अब इस मुद्दे को भुनाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है। सुखबीर बादल ने 15 जुलाई को ‘आप’ सरकार की लैंड पूलिंग नीति के खिलाफ लुधियाना में एक बड़े विरोध प्रदर्शन का भी ऐलान किया है, जो यह दर्शाता है कि पार्टी अब पूरी तरह से आक्रामक मोड में आ चुकी है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भगवंत मान सरकार कैप्टन की गलती से कोई सबक सीखती है, या फिर इतिहास एक बार फिर खुद को दोहराएगा और यह कार्रवाई अकाली दल के लिए एक राजनीतिक पुनरुत्थान का कारण बन जाएगी।

 

Pls read:Punjab: मान मंत्रिमंडल का छठा विस्तार आज, लुधियाना उपचुनाव के विजेता संजीव अरोड़ा लेंगे शपथ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *