बिजनौर: उत्तराखंड में चारधाम यात्रा शुरू होने के साथ ही बिजनौर जिले में खच्चरों में इक्वाइन इन्फ्लूएंजा की पुष्टि होने से पशुपालन विभाग अलर्ट पर है। दो खच्चरों में इस रोग की पुष्टि के बाद संक्रमित जानवरों को आइसोलेट कर दिया गया है। विभाग ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि निगेटिव रिपोर्ट आने के बावजूद अगर किसी जानवर में बुखार, नाक बहना आदि लक्षण दिखाई देते हैं तो उसे उत्तराखंड नहीं जाने दिया जाएगा।
चारधाम यात्रा में अश्व प्रजाति के जानवरों (घोड़े, गधे, खच्चर) का काफी महत्व होता है। यात्री केदारनाथ और बद्रीनाथ जाने के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं, साथ ही दुकानदार भी सामान ढोने के लिए इन पर निर्भर रहते हैं. बिजनौर के कई पशुपालक इससे रोजगार प्राप्त करते हैं.
पिछले महीने उत्तराखंड में अश्व प्रजाति के जानवरों में इक्वाइन इन्फ्लूएंजा संक्रमण मिलने के बाद उनके प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी. बाद में जानवरों के खून के नमूने जांच के लिए हिसार की प्रयोगशाला भेजे गए. केवल निगेटिव रिपोर्ट वाले जानवरों को ही उत्तराखंड जाने की अनुमति दी जा रही है.
इक्वाइन इन्फ्लूएंजा के लक्षण और बचाव:
इस बीमारी से संक्रमित जानवर को तेज बुखार और नाक बहने की शिकायत रहती है. जानवर कमजोर हो जाता है, लेकिन सही इलाज से वह सात से दस दिन में ठीक हो जाता है. इसमें जानवर की मौत की संभावना न के बराबर होती है.
संक्रमित जानवर का जूठा चारा या पानी पीने से दूसरे जानवरों में भी संक्रमण फैल सकता है. इसलिए, बीमार जानवर को अलग रखना चाहिए और उसके आसपास सफाई रखनी चाहिए. चिकित्सक से उपचार कराना चाहिए और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए पौष्टिक आहार देना चाहिए.
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. लोकेश अग्रवाल ने बताया कि दोनों संक्रमित खच्चरों को आइसोलेट कर दिया गया है और जिन जानवरों में इस रोग के लक्षण दिखाई देंगे, उन्हें उत्तराखंड जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
स्योहारा में जांच के लिए सैंपल देने से इनकार:
स्योहारा के मकसूदपुर में चार घोड़ियों में इक्वाइन इन्फ्लूएंजा की पुष्टि की जानकारी पर सैंपल लेने पहुंची टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा. घोड़ी मालिकों ने सैंपल देने से इनकार कर दिया. उनका कहना था कि उनकी घोड़ियाँ अब ठीक हो गई हैं.
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