
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के एक गांव की सरपंच को पद पर बहाल करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है। न्यायालय ने इस दौरान अधिकारियों की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि उन्हें जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को विफल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र में हाल ही में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें अधिकारियों ने पंचायतों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ दुर्व्यवहार किया है।
“बाबुओं को निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधीन होना चाहिए”
पीठ ने टिप्पणी की, “हमने दो-तीन मामलों में फैसला सुनाया है, जिनमें बाबुओं ने निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ दुर्व्यवहार किया था। ऐसा आम तौर पर महाराष्ट्र में हो रहा है। इन बाबुओं को निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधीन होना चाहिए।”
अदालत ने यह भी पाया कि अधिकारी जमीनी स्तर पर निर्वाचित प्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने के लिए पुराने मामलों को फिर से खोलने की कोशिश कर रहे हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने अर्चना सचिन भोसले (जिनके स्थान पर दूसरा सरपंच चुना गया था) के वकील से कहा, “वे (अधिकारी) पुराने मामलों को खोलने का प्रयास करते हैं, जैसे आपके दादा ने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया है, इसलिए आप अयोग्य हैं।”
हाई कोर्ट के दृष्टिकोण से सहमति
सात मार्च को जारी आदेश में, पीठ ने कहा, “हम हाई कोर्ट की ओर से अपनाए गए दृष्टिकोण से सहमत हैं। हम प्रतिवादी संख्या एक (कोकाले) को ग्राम पंचायत, ऐंघर, तालुका रोहा, जिला रायगढ़ की विधिवत निर्वाचित प्रधान के रूप में बहाल किए जाने का समर्थन करते हैं।”
इस्तीफा वापस लेने के बाद भी पद रिक्त घोषित
कोकाले ने जिलाधिकारी के 7 जून, 2024 के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें सरपंच पद से उनके इस्तीफे पर महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम की धारा 29 के तहत मुहर लगाई गई थी, जबकि उन्होंने अपना इस्तीफा वापस ले लिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि कोकाले का इस्तीफा प्रभावी नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने 15 मार्च, 2024 को आयोजित एक बैठक में इसे वापस ले लिया था।
हाई कोर्ट ने कहा था कि जिलाधिकारी ने गलत निष्कर्ष निकाला कि सरपंच का पद रिक्त हो गया है, जबकि उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि इस्तीफा पहले ही वापस ले लिया गया था. हाई कोर्ट ने जिलाधिकारी के आदेश को अवैध और रद्द करने योग्य करार दिया था, जिसके कारण भोसले का निर्वाचन शुरू से ही शून्य माना गया। हाई कोर्ट ने कहा था, “चूँकि याचिकाकर्ता ने सरपंच का पद नहीं छोड़ा, इसलिए प्रतिवादी संख्या चार के उस पद पर निर्वाचित होने का कोई सवाल ही नहीं है।”
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