तेल अवीव में हाल ही में ईरान द्वारा किए गए हमले के बाद, इजरायल की प्रतिक्रिया अपेक्षा से कम आक्रामक रही है। इसके पीछे अमेरिका का दबाव प्रमुख कारण माना जा रहा है। आइए, इस स्थिति का विश्लेषण करते हैं:
घटनाक्रम:
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इजरायल पर सीरिया में ईरानी दूतावास पर हमला करने और राजदूतों को मारने का आरोप लगाया गया।
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इसके जवाब में, ईरान ने इजरायल पर 300 ड्रोन और मिसाइलों से हमला किया।
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इजरायल के रक्षा तंत्र ने कई मिसाइलों को रोक दिया, लेकिन कुछ ने नुकसान पहुंचाया।
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इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने जवाबी कार्रवाई की कसम खाई, लेकिन “वार कैबिनेट“ बैठक में समय और तरीके पर कोई निर्णय नहीं लिया गया।
अमेरिका का हस्तक्षेप:
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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने नेतन्याहू से बात की और स्पष्ट किया कि अमेरिका युद्ध में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेगा।
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बाइडन ने हथियार और अन्य सहायता का आश्वासन दिया, लेकिन युद्ध में शामिल होने से इनकार कर दिया।
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अमेरिका का मानना है कि युद्ध से पश्चिम एशिया में स्थिति और बिगड़ जाएगी।
इजरायल की नरमी के कारण:
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अमेरिकी दबाव: अमेरिका का समर्थन इजरायल के लिए महत्वपूर्ण है। अमेरिका के युद्ध में शामिल न होने के फैसले ने इजरायल की आक्रामक प्रतिक्रिया की संभावना को कम कर दिया है।
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क्षेत्रीय स्थिरता: इजरायल को इस बात की भी चिंता है कि पूर्ण युद्ध से क्षेत्रीय स्थिरता को खतरा हो सकता है और अन्य देशों को भी संघर्ष में घसीटा जा सकता है।
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आंतरिक राजनीति: नेतन्याहू की सरकार आंतरिक राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रही है। एक बड़ा युद्ध जनता के बीच अलोकप्रिय साबित हो सकता है।
भविष्य:
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अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि इजरायल कैसे प्रतिक्रिया देगा। सीमित जवाबी कार्रवाई या कूटनीतिक प्रयासों की संभावना है।
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अमेरिका की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी। अमेरिका दोनों देशों के बीच तनाव कम करने और क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने की कोशिश करेगा।
निष्कर्ष:
अमेरिका का दबाव और क्षेत्रीय स्थिरता की चिंता ने इजरायल को ईरान के हमले के प्रति नरम प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर किया है। आने वाले दिनों में इजरायल की रणनीति और अमेरिका की भूमिका पर नजर रखना महत्वपूर्ण होगा।
वो इजरायल की सुरक्षा के लिए हमेशा खड़ा है, लेकिन युद्ध नहीं चाहता है। अमेरिका के बाद दूसरे देशों ने भी युद्ध न लड़ने की बात कही है।