शिमला। हिमाचल प्रदेश की चेरी पर इस साल सूखे के बादल मंडरा रहे हैं। बारिश और बर्फवारी कम होने से बगीचों में नमी नही हैं। हिमाचल में सालाना 300 से 350 मीट्रिक टन चेरी का उत्पादन होता है।
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शिमला जिले की महाराष्ट्र और गुजरात तक भेजी जाती है। इसके अलावा रिलायंस और बिग बास्केट जैसी बड़ी कंपनियां भी चेरी की खरीदता हैं। शिमला जिले में नारकंडा, कोटगढ़, बागी, मतियाना, कुमारसेन और थानाधार चेरी की पैदावार के सबसे बड़े केंद्र हैं। वहीं, तापमान में बढ़ोतरी का असर गेहूं की फसल पर पड़ने का अंदेशा है। मौसम में आए बदलाव के कारण असिंचित इलाकों में गेहूं के उत्पादन में 30-40 फीसदी की कमी आ सकती है। पिछले साल भी फरवरी और मार्च में अचानक तापमान बढ़ने से गेहूं की पैदावार पर भारी असर पड़ा था। इस बार भी स्थिति तरह बनने लगी है। पिछले साल गेहूं के दाने का आकार काफी छोटा रह गया। हालांकि, पहले इसका असर गेहूं पर नहीं दिखा, जब थ्रेसिंग शुरू हुई तो उत्पादन पर असर देखा। जिला सिरमौर में फरवरी में ही तापमान 25 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने लगा है। आने वाले समय में इसमें और बढ़ोतरी होगी। इस बीच यदि अच्छी बारिश नहीं हुई तो इस साल भी उत्पादन में गिरावट दर्ज की जा सकती है। बदलते मौसम से फसल के पीला रतुआ की चपेट में आने की संभावना है।