नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड राज्य निर्वाचन आयोग पर कड़ा रुख अपनाते हुए उसके असंवैधानिक स्पष्टीकरण को चुनौती देने वाली याचिका को न केवल खारिज कर दिया, बल्कि उस पर दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने इस बात पर सवाल उठाया कि आयोग संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ कैसे जा सकता है.
यह मामला तब सामने आया जब उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने आयोग के एक स्पष्टीकरण पर रोक लगा दी थी. आयोग ने स्पष्टीकरण जारी किया था कि यदि किसी प्रत्याशी का नाम एक से अधिक ग्राम पंचायत की मतदाता सूचियों में है, तो भी उसे चुनाव लड़ने का अधिकार होगा और उसका नामांकन केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जाएगा. उच्च न्यायालय ने जुलाई 2025 में अपने आदेश में कहा था कि यह स्पष्टीकरण प्रथम दृष्ट्या उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम, 2016 के विपरीत है.
राज्य निर्वाचन आयोग ने उच्च न्यायालय के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. याचिका में आयोग ने दलील दी थी कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां प्रत्याशियों के नाम कई मतदाता सूचियों में पाए गए और उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई.
चुनाव निकाय ने अपने स्पष्टीकरण में कहा था कि किसी प्रत्याशी का नामांकन केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जाएगा कि उसका नाम एक से ज्यादा ग्राम पंचायतों, प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र या नगर पालिका निकाय में दर्ज है. आयोग ने अपने स्पष्टीकरण का आधार 2016 के अधिनियम की धारा 9 और उसकी उप-धारा (6) और (7) को बताया था.
अधिनियम की उप-धारा (6) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति एक से अधिक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिए मतदाता सूची में या एक ही प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिए मतदाता सूची में एक से अधिक बार पंजीकृत होने का हकदार नहीं होगा.
वहीं, उप-धारा (7) में यह प्रावधान है कि यदि किसी व्यक्ति का नाम नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत या छावनी के संबंधित किसी भी मतदाता सूची में दर्ज है, तो उसे किसी भी प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के लिए मतदाता सूची में शामिल होने का हक नहीं होगा, जब तक कि वह यह न दिखा दे कि उसका नाम ऐसी वोटर लिस्ट से हटा दिया गया है.
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह रेखांकित किया था कि जब कानून में एक से अधिक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र या एक से अधिक मतदाता सूची में मतदाता के पंजीकरण पर स्पष्ट रूप से रोक लगाई गई है और यह एक वैधानिक रोक है, ऐसे में आयोग का दिया गया स्पष्टीकरण धारा 9 की उपधारा (6) और (7) के तहत रोक के उलट नजर आता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी उच्च न्यायालय के इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए आयोग के स्पष्टीकरण को असंवैधानिक करार दिया और उस पर जुर्माना लगाया.
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