नई दिल्ली। पाकिस्तान में सरकार और सेना के बीच सत्ता के बंटवारे को लेकर लंबे समय से चली आ रही बहस को पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक साक्षात्कार के दौरान सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लिया है. आसिफ ने खुले तौर पर कबूल किया है कि उनके देश में शासन का संचालन ‘हाइब्रिड मॉडल’ के तहत होता है, जिसमें सेना और नागरिक सरकार मिलकर फैसले लेती हैं. यह बयान इस बात की पुष्टि करता है कि पाकिस्तान की सत्ता में सेना का दखल हमेशा से रहा है, भले ही वहां के नेता इस बात को स्वीकार न करें.
एक साक्षात्कार के दौरान जब पाक के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ से पूछा गया कि क्या पाकिस्तान में यह एक अजीब व्यवस्था नहीं है, जिसे वह हाइब्रिड मॉडल बता रहे हैं, जहां पर सेना और नागरिक सरकार एक-दूसरे के साथ सत्ता चलाते हैं, जबकि वास्तव में रक्षा मंत्री देश की सेना के प्रभारी होते हैं. इसका सीधा मतलब हुआ कि आसिम मुनीर (सेना प्रमुख) उनसे अधिक प्रभावशाली हुए. इस सवाल के जवाब को आसिफ ख्वाजा गोल-गोल घुमाने लगे और कहा कि ऐसा नहीं है, मैं एक राजनीतिक नियुक्त व्यक्ति हूं और मैं एक राजनीतिक कार्यकर्ता हूं, जैसा कि आप जानते हैं. ख्वाजा आसिफ ब्रिटिश-अमेरिकी पत्रकार मेहदी हसन के साथ बातचीत कर रहे थे.
जब एक उदाहरण के तौर पर आसिफ ख्वाजा से पूछा गया कि अमेरिका में युद्ध सचिव पीट हेगसेथ के पास अमेरिकी जनरलों को बर्खास्त करने का अधिकार है, लेकिन पाकिस्तानी रक्षा मंत्री के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है, तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि अमेरिका में एक अलग मॉडल है, जिसे डीप स्टेट कहा जाता है.
इस साक्षात्कार के दौरान जब पाकिस्तानी रक्षा मंत्री से पूछा गया कि उनके यहां पर सेना प्रमुख का प्रभाव इतना ज्यादा क्यों है कि रक्षा मंत्री भी उसके अधीन आते नजर आते हैं, तो इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह पूरी तरीके से समान नहीं है, लेकिन हम फैसले सहमति से लेते हैं. कई जगहों पर हम असहमत हो जाते हैं, लेकिन अंत में वह फैसला लागू होता है जो सामूहिक मंथन से लिया गया हो.
पाकिस्तान के अखबार ‘द डॉन’ के अनुसार, ख्वाजा आसिफ ने पहले भी इस हाइब्रिड मॉडल की सराहना की है. इसको उन्होंने पाकिस्तान की आर्थिक और प्रशासनिक समस्याओं को हल करने के लिए व्यावहारिक आवश्यकता बताया था. उन्होंने कहा था कि हमारे देश में आदर्श लोकतंत्र नहीं है, लेकिन मौजूदा व्यवस्था ज्यादा अच्छे से काम कर रही है. यह कबूलनामा पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में सेना की भूमिका को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की धारणा को और मजबूत करता है.
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