क्या आप अपनी बच्ची पर पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ खेल-कूद और अन्य गतिविधियों में भी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देने का दबाव डालते हैं? क्या आप उसे दिन-रात समाज की उम्मीदों पर खरा उतरने की नसीहत देते नहीं थकते? अगर हां तो संभल जाइए। ‘जर्लन एजुकेशनल रिव्यू’ में छपे एक ब्रिटिश अध्ययन में दावा किया गया है कि बच्चियों में ‘परफेक्शन’ लाने की माता-पिता और शिक्षकों की चाह उन्हें तनाव में डाल रही है। एक्जिटर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने साल 1990 से 2021 के बीच हुए 11 अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों का विश्लेषण किया। सभी अध्ययन बच्चियों और किशोरियों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालने वाले विभिन्न कारकों पर रोशनी डालते थे। उन्होंने पाया कि परीक्षा में अच्छे अंक लाने, खूबसूरत दिखने के साथ-साथ लोकप्रियता अर्जित करने और खेल-कूद सहित अन्य गतिविधियों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देने का दबाव बच्चियों व किशोरियों में तनाव, बेचैनी व आत्मविश्वास में कमी की शिकायत को जन्म दे रहा है।
मुख्य शोधकर्ता डॉ. लॉरेन स्टेंटिफोर्ड कहती हैं, घर और स्कूल का माहौल बच्चियों की मानसिक सेहत निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाता है। जो किशोरियां मां-बाप से अच्छे अंक लाने या सुंदर-हुनरमंद दिखने का दबाव झेलती हैं या फिर स्कूल में हर समय बेहद प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में घिरी रहती हैं, उनमें भविष्य को लेकर डर व अनिश्चितता का भाव पैदा होने का जोखिम ज्यादा रहता है। यही कारण है कि इन किशोरियों को कम उम्र से ही तनाव, बेचैनी और आत्मविश्वास में कमी की शिकायत सताने लगती है। स्टेंटिफोर्ड के मुताबिक जीवन में सफल होने का दबाव हर आय वर्ग की बच्चियों पर है। हालांकि, इसकी वजह अलग-अलग है। उच्च और मध्यम आय वर्ग की ज्यादातर किशोरियां जहां हर समय इस डर में जीती हैं कि वे समाज में अपने मां-बाप और भाई-बहन के बराबर या उससे बेहतर कद हासिल कर पाएंगी या नहीं। वहीं, निम्न और निम्न-मध्यम आय वर्ग की किशोरियां अपने अभिभावकों की कुर्बानियों को जाया नहीं होने देना चाहतीं। वे हर क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देना अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझती हैं।