हिमाचल प्रदेश की सरकार ने राज्य के विकास और स्थानीय लोगों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए कई अहम फैसले लिए हैं। इनमें सबसे प्रमुख निर्णय भू-राजस्व कानून की धारा 118 को लेकर है, जो अक्सर सहकारी समितियों के कार्यों में एक बड़ी बाधा मानी जाती थी। शिमला में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में सरकार ने फैसला लिया है कि अब हिमाचली लोगों द्वारा गठित सहकारी समितियों को जमीन से जुड़े कार्यों के लिए भू-राजस्व अधिनियम की धारा 118 के तहत अलग से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी। अब तक इन समितियों को अपना काम शुरू करने के लिए सरकार से इस धारा के तहत मंजूरी लेनी पड़ती थी, जिसमें काफी समय और उलझन का सामना करना पड़ता था। सरकार के इस कदम से न केवल प्रशासनिक कार्यों में तेजी आएगी, बल्कि ग्रामीण स्तर पर रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे क्योंकि समितियां अब बिना किसी कानूनी पेचीदगी के अपना काम आसानी से कर सकेंगी।
इसके अलावा, सरकार ने प्रदेश में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए भी महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। पर्यटन क्षेत्र में निजी निवेश को आकर्षित करने के उद्देश्य से पर्यटन निवेश संवर्धन परिषद (टीआइपीसी) के नियमों को मंजूरी दे दी गई है। नए नियमों के अनुसार, अब प्रत्येक केस के लिए दस लाख रुपये की फीस जमा करनी होगी। वहीं, निवेशकों द्वारा जमा की गई एक करोड़ रुपये की सिक्योरिटी राशि को तीस दिनों के भीतर वापस कर दिया जाएगा। रीयल एस्टेट के क्षेत्र में भी कड़े नियम बनाए गए हैं। इसके तहत पचास करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली परियोजनाओं का निर्माण कार्य 36 महीनों के भीतर पूरा करना अनिवार्य होगा।
हालांकि, सरकार ने निर्माण कार्यों में आने वाली व्यावहारिक दिक्कतों का भी ध्यान रखा है। यदि किसी कारणवश निर्माण कार्य तय समय सीमा में पूरा नहीं हो पाता है, तो परिषद के पास यह अधिकार होगा कि वह परियोजना को पूरा करने के लिए दो वर्ष तक का अतिरिक्त समय दे सके। लेकिन इस अतिरिक्त समय के लिए आवेदक को दस प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क का भुगतान करना होगा। इन नियमों को स्वीकृति मिलने के बाद आम जनता पंद्रह दिनों के भीतर अपने सुझाव दे सकेगी और ऐसी परियोजनाओं को चौदह दिनों के भीतर अनुमति प्रदान करने का प्रावधान रखा गया है।
होटल व्यवसायियों को राहत देते हुए सरकार ने शक्तियों का विकेंद्रीकरण भी किया है। पर्यटन से जुड़ी सबवेंशन स्कीम के तहत अब जिला पर्यटन अधिकारी (डीटीडीओ) और अतिरिक्त जिला पर्यटन अधिकारी (एटीडीओ) को बारह लाख रुपये तक के मामलों को निपटाने की शक्ति दे दी गई है। इससे पहले दो करोड़ रुपये तक की ऋण सीमा वाले मामलों में स्वीकृति देने का अधिकार केवल पर्यटन निदेशक के पास था, जिससे छोटे कार्यों के लिए भी लोगों को शिमला के चक्कर काटने पड़ते थे। अब जिला स्तर पर ही काम होने से होटल मालिकों को इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा। ज्ञात हो कि कोरोना महामारी के दौरान पर्यटन क्षेत्र को हुए नुकसान की भरपाई के लिए सरकार ने यह सबवेंशन स्कीम शुरू की थी।
इसके साथ ही राजनीतिक मोर्चे पर भी सरगर्मियां तेज हैं। तपोवन में होने वाले विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार कई संशोधन विधेयक लाने की तैयारी में है। मंत्रिमंडल ने नगर निगम महापौर और उपमहापौर अध्यादेश से जुड़े संशोधन विधेयक 2025 और हिमाचल प्रदेश नगर पालिका संशोधन विधेयक 2025 को पेश करने की मंजूरी दे दी है। इस संबंध में रणनीति बनाने के लिए तपोवन में सर्वदलीय बैठक और परिधि गृह में कांग्रेस विधायक दल की बैठक भी आयोजित की जाएगी।
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