Uttarakhand: भालुओं की बढ़ती आक्रामकता के पीछे ‘नींद में खलल’, वन्यजीव संस्थान ने जताई चिंता – The Hill News

Uttarakhand: भालुओं की बढ़ती आक्रामकता के पीछे ‘नींद में खलल’, वन्यजीव संस्थान ने जताई चिंता

देहरादून। उत्तराखंड में भालुओं की बढ़ती आक्रामकता के पीछे चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों का मानना है कि भालुओं की शीत निद्रा (हाइबरनेशन) में इस कदर खलल पड़ रहा है कि वे अपनी गुफाओं में आराम करने की बजाय आबादी वाले क्षेत्रों की ओर रुख कर रहे हैं। इससे मनुष्य से सामना होने पर वे सीधे हमला कर रहे हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है।

वन्यजीव विशेषज्ञ और भारतीय वन्यजीव संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डा. एस सत्यकुमार के अनुसार, उत्तराखंड और अन्य स्थानों पर पाए जाने वाले काले भालू आमतौर पर शीतकाल में कम से कम चार माह के लिए गहरी नींद में चले जाते हैं। वे पूरी सर्दी अपनी गुफा में ही बिताते हैं। लेकिन, इस बार वे शीत निद्रा में जाने की बजाय आबादी वाले क्षेत्रों में दिखाई दे रहे हैं। इसका सीधा मतलब है कि उनकी नींद में गंभीर खलल पड़ रहा है।

डा. सत्यकुमार ने बताया कि कुछ साल पहले भालुओं की शीत निद्रा को लेकर कश्मीर के सात काले भालुओं पर रेडियो कॉलर लगाए गए थे। तब यह चौंकाने वाली जानकारी सामने आई थी कि कम से कम चार माह की शीत निद्रा की जगह भालू केवल दो माह ही नींद ले रहे थे। उत्तराखंड के भालुओं में भी इसी तरह का खलल या इससे भी अधिक समस्या नजर आ रही है।

डा. सत्यकुमार के मुताबिक, भालू तभी शीत निद्रा में जाते हैं, जब मौसम में अत्यधिक ठंडक पैदा हो जाए और भोजन की कमी महसूस होने लगे। वर्तमान में कुछ ऐसी परिस्थितियां बन रही हैं, जिनमें मौसम में अपेक्षित ठंडक नहीं है। इसके अलावा, उन्हें आबादी क्षेत्रों में आसानी से भोजन मिल रहा है, जैसे कूड़े के ढेर। लिहाजा, इस दिशा में भालू के हमले वाले क्षेत्रों के वनों का पुख्ता अध्ययन आवश्यक है, ताकि इस व्यवहार के मूल कारणों को समझा जा सके।

भालू से टकराव रोकने में कारगर उपाय:

  • आबादी क्षेत्रों में कूड़े के ढेर नियमित रूप से साफ किए जाएं ताकि भालुओं को भोजन का आसान स्रोत न मिले।

  • जहां कूड़ा डंप किया जाता है, वहां भालुओं की आमद रोकने के लिए मजबूत दीवारें बनाई जाएं।

  • वन क्षेत्रों में जाने वाले लोग समूह में जाएं और अपने साथ डंडा अवश्य रखें, ताकि आत्मरक्षा की स्थिति में काम आ सके।

  • पर्यटन क्षेत्रों में कूड़ा फेंकने पर सख्त प्रतिबंध लगाया जाए और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुनिश्चित किया जाए।

भालुओं के असामान्य व्यवहार से जुड़े आंकड़े:

  • वर्ष 2025 में अब तक भालू के कम से कम 71 हमले प्रकाश में आए हैं, जो उनकी बढ़ती आक्रामकता को दर्शाता है।

  • भालू के हमलों में वर्ष 2025 में 7 व्यक्तियों की मौत हो चुकी है, जो गंभीर चिंता का विषय है।

  • भालुओं की बढ़ती आक्रामकता पर नियंत्रण पाने के लिए उत्तराखंड में पहली बार एक भालू को मारने का आदेश भी दिया गया है, जो इस समस्या की गंभीरता को दर्शाता है।

इन आंकड़ों और विशेषज्ञों की राय से स्पष्ट होता है कि मानव-भालू संघर्ष को कम करने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है, जिसमें भालुओं के व्यवहार के अध्ययन के साथ-साथ उनके प्राकृतिक पर्यावास को बनाए रखना और आबादी क्षेत्रों में भोजन के स्रोतों को नियंत्रित करना शामिल है।

 

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