नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल के दिनों में लिए गए फैसलों में से H-1B वीजा पर सालाना $100,00 फीस लगाने का निर्णय सबसे अधिक चर्चा में रहा है। इस बीच, यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ने ट्रंप के इस फैसले को अदालत में चुनौती देने का फैसला किया है, जिससे इस विवादास्पद नीति पर कानूनी लड़ाई शुरू हो गई है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने दावा किया था कि इस फैसले से अमेरिका की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत होगी। हालांकि, ट्रंप के इस फैसले का असर अब दिखने लगा है। कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को यह वीजा देना बंद कर दिया है, जिससे कई लोगों पर सीधा असर पड़ा है, खासकर उन विदेशी पेशेवरों पर जो अमेरिका में काम करना चाहते हैं।
ट्रंप के फैसले के खिलाफ कोर्ट पहुंचा US चैंबर ऑफ कॉमर्स
यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ट्रंप प्रशासन पर केस करने की तैयारी में है। इस चैंबर ने दावा किया है कि यह फीस गैर-कानूनी है और इससे अमेरिकी व्यवसायों को काफी नुकसान होने की संभावना है। चैंबर का मानना है कि यह फीस इमिग्रेशन कानूनों का उल्लंघन करती है और अमेरिकी कंपनियों पर अनावश्यक बोझ डालती है।
गुरुवार को वाशिंगटन डीसी में दायर किए गए एक संघीय मामले में चैंबर ने कोर्ट से आग्रह किया कि वह यह घोषित करे कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फीस लगाकर कार्यकारी शाखा के अधिकार का उल्लंघन किया है और संघीय सरकारी एजेंसियों को इसे लागू करने से रोक दिया जाए।
अमेरिका में मिलने वाला H-1B वीजा हाई-स्किल्ड नौकरियों के लिए होता है, जिन्हें अमेरिकी टेक कंपनियों को भरना मुश्किल लगता है। यह ध्यान देने योग्य है कि भारत के लोग सबसे अधिक इस वीजा का उपयोग करके अमेरिका में नौकरी करते हैं। ऐसे में, यह फैसला भारतीय पेशेवरों पर भी सीधा असर डाल रहा है।
ट्रंप प्रशासन के खिलाफ किए गए केस में क्या कहा गया?
यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स का कहना है कि एच-1बी वीजा की यह नई फीस इमिग्रेशन कानूनों का उल्लंघन करती है। इसमें यह शामिल करने की आवश्यकता है कि फीस पर सरकार द्वारा वीजा प्रक्रिया को पूरा करने में किए गए खर्च के आधार पर तय किए जाएं। चैंबर का तर्क है कि सरकार द्वारा लगाई गई फीस केवल प्रशासनिक लागतों को कवर करने के लिए होनी चाहिए, न कि एक राजस्व सृजन उपकरण के रूप में।
कोर्ट में दाखिल किए गए केस में कहा गया कि अमेरिकी राष्ट्रपति के पास अमेरिका में गैर-नागरिकों की एंट्री पर काफी अधिकार है, लेकिन यह अधिकार कानून से बंधा हुआ है और इसका उल्लंघन करने का अधिकार किसी के पास नहीं है। इसका मतलब है कि राष्ट्रपति को अपने अधिकारों का प्रयोग करते समय मौजूदा कानूनों का पालन करना होगा। इस चैंबर के अनुसार, ट्रंप के नई फीस लगाने के एलान से पहले, अधिकांश H-1B वीजा आवेदन की कीमत $3,600 से कम थी, जबकि अब यह कई गुना बढ़ गई है।
कोर्ट में दायर किए गए केस में यह भी कहा गया कि अगर इसे लागू किया जाता है, तो यह फीस अमेरिकी व्यवसायों को काफी नुकसान पहुंचाएगी। कंपनियों को या तो अपनी लेबर कॉस्ट बहुत ज़्यादा बढ़ानी पड़ेगी या कम हाई-स्किल्ड कर्मचारियों को काम पर रखना होगा जिनके लिए घरेलू रिप्लेसमेंट आसानी से उपलब्ध नहीं होंगे। इससे अमेरिकी कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
इस वीजा की मदद से बड़ी संख्या में भारतीय भी अमेरिका में नौकरी करने के लिए पहुंचते हैं। अगर कोर्ट से इस मामले में राहत मिलती है, तो अमेरिका में नौकरी करने की चाह रखने वालों को बड़ी राहत मिलेगी और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी संभावित नुकसान से बचाया जा सकेगा। यह मामला H-1B वीजा नीति के भविष्य और अमेरिका में विदेशी पेशेवरों के लिए अवसरों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा।
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