नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को रिकवरी एजेंट के रूप में काम करने से स्पष्ट रूप से मना किया है, और इस बात पर जोर दिया है कि दीवानी विवादों को आपराधिक मामलों में बदलने की प्रवृत्ति को कम किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि बकाया राशि की वसूली के लिए गिरफ्तारी की धमकी का इस्तेमाल करना कानून का दुरुपयोग है। यह एक चिंताजनक चलन बन गया है कि लोग पैसे वसूलने के लिए आपराधिक मामले दर्ज करा देते हैं, जबकि असल में यह एक दीवानी मामला होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में बढ़ते आपराधिक मामलों के संदर्भ में यह सुनवाई की। एक विशेष मामले में, पैसे की वसूली के विवाद में एक व्यक्ति के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज कर दिया गया था, जिससे अदालत ने आश्चर्य व्यक्त किया। कोर्ट ने कहा कि आपराधिक कानून का इस तरह का दुरुपयोग न्याय प्रणाली के लिए एक गंभीर खतरा है।
यूपी सरकार ने बताई पुलिस की दुविधा
सुनवाई के दौरान, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में पुलिस एक मुश्किल स्थिति में फंस जाती है।] यदि पुलिस दीवानी मामलों में शिकायत मिलने पर भी प्राथमिकी दर्ज नहीं करती है, तो उसे अदालतों से फटकार मिलती है। वहीं, यदि वह ऐसे मामलों में केस दर्ज करती है, तो उस पर पक्षपात करने और कानून के खिलाफ काम करने का आरोप लगता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने पुलिस की इस दुविधा को स्वीकार करते हुए कहा कि पुलिस को केस दर्ज करते समय अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि आपराधिक कानून का उल्लंघन न हो और न्यायिक प्रणाली में कोई बाधा न आए। उन्होंने स्पष्ट किया कि अदालतें विवादित पक्षों के लिए कोई रिकवरी एजेंट नहीं हैं और न्यायिक प्रणाली का इस तरह का दुरुपयोग स्वीकार नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने दिया सुझाव
इस समस्या के समाधान के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को प्रत्येक जिले में एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने का सुझाव दिया है। कोर्ट का कहना है कि जब भी पुलिस को दीवानी और आपराधिक मामलों के बीच अंतर को लेकर कोई उलझन हो, तो केस दर्ज करने से पहले नोडल अधिकारी से परामर्श लिया जा सकता है।यह नोडल अधिकारी अधिमानतः एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश हो सकता है। शीर्ष अदालत ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल को इस प्रस्ताव पर विचार करने और दो सप्ताह के भीतर अदालत को सूचित करने का निर्देश दिया है।सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई बार इस प्रवृत्ति पर चिंता जताई है कि पक्षकार अपने विवादों का त्वरित निपटारा पाने के लिए जानबूझकर आपराधिक मामले दर्ज कराते हैं।
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