नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति पद के चुनाव की घोषणा के बाद से ही राजनीतिक गलियारों में यह कयास लगाए जा रहे थे कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) बिहार चुनाव के समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अपना उम्मीदवार चुनेगा। हालांकि, इन अटकलों को दरकिनार करते हुए भाजपा ने सभी को चौंकाते हुए महाराष्ट्र के तत्कालीन उपराज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। राधाकृष्णन के नाम के एलान को कई राजनीतिक विशेषज्ञ भाजपा का ‘मास्टरस्ट्रोक’ मान रहे हैं, क्योंकि उनका संबंध तमिलनाडु से है।
सीपी राधाकृष्णन ही क्यों?
केंद्रीय नेतृत्व द्वारा सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण बताए जा रहे हैं:
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तमिलनाडु में पकड़: सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु से आते हैं और राज्य की राजनीति में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है।
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आगामी विधानसभा चुनाव: तमिलनाडु में अगले साल 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा के इस कदम से राज्य का सियासी समीकरण प्रभावित हो सकता है और पार्टी को अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद मिल सकती है।
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ओबीसी समुदाय से संबंध: राधाकृष्णन अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इस चुनाव के माध्यम से भाजपा पिछड़े वर्ग में अपनी पैठ बढ़ाने में सफल हो सकती है।
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दक्षिण में पैर जमाने की कोशिश: उत्तर भारत की तुलना में दक्षिण भारत में भाजपा की पकड़ कमजोर है। राधाकृष्णन की उम्मीदवारी से भाजपा को दक्षिण में अपनी जड़ें जमाने में मदद मिल सकती है।
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लोकप्रिय और अनुभवी चेहरा: सीपी राधाकृष्णन सियासी गलियारों में एक पसंदीदा चेहरा हैं। वह तमिलनाडु से लगातार दो बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं और झारखंड, तेलंगाना, पुदुचेरी सहित महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में भी कार्य कर चुके हैं।
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दक्षिण भारत का प्रतिनिधित्व: यदि सीपी राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति चुने जाते हैं, तो वह डॉ. राधाकृष्णन और आर. वेंकटरमन के बाद इस पद पर बैठने वाले तमिलनाडु के तीसरे शख्सियत होंगे। इससे संसद में दक्षिण भारत की भागीदारी भी बढ़ेगी।
क्या ‘इंडी’ गठबंधन में पड़ेगी दरार?
सीपी राधाकृष्णन की उम्मीदवारी से विपक्ष के ‘इंडी’ गठबंधन में संभावित दरार को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी डीएमके, जो पिछड़ा वर्ग का समर्थन करने वाली कई पार्टियों के साथ ‘इंडी’ गठबंधन का हिस्सा है, ने भाजपा के इस फैसले का स्वागत किया है। डीएमके प्रवक्ता टी.के.एस. एलंगोवन ने इसे ‘स्वागत योग्य कदम’ बताया और कहा कि लंबे समय बाद कोई तमिल भारत का उपराष्ट्रपति बन सकता है। हालांकि, जब उनसे पूछा गया कि क्या डीएमके सरकार का समर्थन करेगी, तो उन्होंने स्पष्ट इनकार कर दिया। एलंगोवन के अनुसार, सीपी राधाकृष्णन भाजपा की पसंद हैं, लेकिन उनकी पार्टी गठबंधन के फैसले के अनुसार ही काम करेगी।
पहले भी मिला है विपक्ष का समर्थन
यह जानना दिलचस्प है कि उपराष्ट्रपति या राष्ट्रपति चुनाव में अतीत में भी विपक्षी खेमे की कई पार्टियों ने सत्ताधारी दल का समर्थन किया है:
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2007: कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को उम्मीदवार बनाया, तब एनडीए का हिस्सा रही शिवसेना ने सरकार के पक्ष में मतदान किया था।
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2012: यूपीए सरकार ने प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया, तो एनडीए में शामिल शिवसेना और जदयू ने सरकार का समर्थन किया था।
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2017: भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने बिहार के तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया, तो विपक्ष में रहने के बावजूद जदयू ने सरकार का साथ दिया था।
इस बार क्या हैं समीकरण?
चुनाव आयोग ने 9 सितंबर को उपराष्ट्रपति पद के लिए मतदान की घोषणा की है। इस चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसद मतदान करेंगे। वर्तमान में एनडीए के पास 422 सांसद हैं। इसके अलावा, कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजू जनता दल (बीजद), वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सहित कुछ पार्टियां एनडीए के पक्ष में वोट डाल सकती हैं। इन पार्टियों के पास लगभग 22 सांसद हैं, जिससे एनडीए का खेमा और मजबूत हो सकता है।
डीएमके पर बना सस्पेंस
भले ही डीएमके ने ‘इंडी’ गठबंधन का साथ देने की बात कही हो, लेकिन सीपी राधाकृष्णन को मैदान में उतारकर भाजपा ने डीएमके को एक कशमकश में डाल दिया है। तमिल सियासत को हमेशा अपने एजेंडे में सबसे आगे रखने वाली डीएमके के लिए यह फैसला लेना काफी मुश्किल होगा। संसद में डीएमके के कुल 32 सांसद हैं, ऐसे में उनका रुख न केवल उपराष्ट्रपति चुनाव, बल्कि दक्षिण भारत की राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डालेगा।
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