Delhi: ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर भारत, गहरे समुद्र में तेल व गैस खोज मिशन

नई दिल्ली। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर है, खासकर तेल और गैस के क्षेत्र में। देश अपनी कुल तेल खपत का लगभग 87 प्रतिशत आयात करता है, जिससे राष्ट्रीय खजाने पर भारी बोझ पड़ता है। पिछले दो दशकों के दौरान घरेलू क्षेत्र में तेल और गैस के नए भंडार खोजने के प्रयासों ने बहुत उत्साहजनक परिणाम नहीं दिए हैं, जिसने देश को ऊर्जा सुरक्षा के लिए विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर अत्यधिक निर्भर बना दिया है।

इस गंभीर चुनौती का सामना करने और देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर लाल किले से अपने भाषण में एक महत्वपूर्ण घोषणा की है। उन्होंने गहरे समुद्र के भीतर तेल और गैस के भंडार खोजने के काम को ‘मिशन मोड’ पर शुरू करने का संकल्प व्यक्त किया है। इस पहल को ‘नेशनल डीप वाटर एक्सप्लोरेशन मिशन’ नाम दिया गया है, जिसका लक्ष्य समुद्र की गहराई में छिपे इन महत्वपूर्ण संसाधनों को उजागर करना है।

प्रधानमंत्री की यह घोषणा ऐसे समय में आई है जब हाल के समय में पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने अंडमान और निकोबार क्षेत्र में बड़े हाइड्रोकार्बन भंडार मिलने के संकेत दिए हैं। इन संकेतों को देखते हुए, गहरे समुद्र में अन्वेषण के लिए एक समर्पित मिशन का शुभारंभ अत्यधिक सामयिक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

भारत की ऊर्जा आयात पर निर्भरता ने कई भू-राजनीतिक चुनौतियाँ भी पैदा की हैं। हाल के समय में, भारत ने रूस से बड़ी मात्रा में तेल की खरीद की है, जिसके कारण कुछ पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका के साथ उसके संबंधों में तनाव आया है। ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की यह कोशिश न केवल आर्थिक बोझ को कम करने में मदद करेगी बल्कि भारत को वैश्विक ऊर्जा बाजार में एक मजबूत और स्वतंत्र स्थिति भी प्रदान करेगी।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में दो बार इस बात पर जोर दिया कि विदेशों से ऊर्जा आयात करने पर देश को कितनी बड़ी राशि खर्च करनी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि “हम एनर्जी के लिए बहुत सारे देशों पर निर्भर हैं, पेट्रोल-डीजल-गैस आयात पर लाखों करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं।” उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि यह भारी-भरकम राशि, यदि आयात पर खर्च न की जाती, तो देश के युवाओं के भविष्य, गरीबी के खिलाफ लड़ाई, किसानों के कल्याण और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में उपयोग की जा सकती थी। इस प्रकार, ऊर्जा में आत्मनिर्भरता हासिल करना देश की समग्र समृद्धि और सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

तेल और गैस के अलावा, भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अन्य स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है। पिछले 11 वर्षों में, भारत में सौर ऊर्जा की क्षमता में 30 गुना वृद्धि हुई है। पनबिजली परियोजनाओं का भी विस्तार हो रहा है, और ‘मिशन ग्रीन हाइड्रोजन’ में हजारों करोड़ रुपये का निवेश किया जा रहा है। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भी देश ने अपनी क्षमता को दस गुना बढ़ाने का संकल्प लिया है, जिसके तहत 10 नए परमाणु रिएक्टरों पर काम चल रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी ने ‘क्रिटिकल मिनरल्स’ के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि आज पूरा विश्व क्रिटिकल मिनरल्स को लेकर बहुत सतर्क हो गया है और उनके सामर्थ्य को भली-भांति समझने लगा है। एनर्जी, इंडस्ट्री, रक्षा और टेक्नोलॉजी जैसे सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में क्रिटिकल मिनरल्स की अहम भूमिका है। इस आवश्यकता को पहचानते हुए, भारत ने ‘नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन’ लॉन्च किया है, जिसके तहत देश भर में 1200 से अधिक स्थानों पर खोज अभियान चल रहा है। यह पहल क्रिटिकल मिनरल्स में भी आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में भारत के दृढ़ संकल्प को दर्शाती है, जिससे देश को एक विकसित और ऊर्जा-सुरक्षित राष्ट्र के रूप में स्थापित किया जा सके।

 

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