नई दिल्ली।
अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर 50 फीसदी का भारी-भरकम टैरिफ लगाए जाने का असर अब जमीन पर दिखने लगा है। वॉलमार्ट, अमेजन, टारगेट और गैप जैसे अमेरिका के दिग्गज खुदरा विक्रेताओं ने भारत से आने वाले अपने ऑर्डर फिलहाल होल्ड पर रख दिए हैं। इस फैसले से भारतीय निर्यातकों, विशेषकर कपड़ा उद्योग में, संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि भारतीय निर्यातकों को उनके अमेरिकी खरीदारों की तरफ से आधिकारिक पत्र और ईमेल मिले हैं। इन संदेशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वे अगली सूचना तक कपड़ों और अन्य सामानों की शिपमेंट को रोक दें। भारतीय निर्यातकों को पहले से ही यह डर सता रहा था कि टैरिफ बढ़ने से उनके ऑर्डर बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं, और अब यह डर हकीकत में बदल गया है।
कौन उठाएगा बढ़ी हुई लागत का बोझ?
इस विवाद के केंद्र में बढ़ी हुई लागत का बोझ है। अमेरिकी खुदरा कंपनियां चाहती हैं कि टैरिफ लगने से बढ़ी हुई लागत का भार भारतीय निर्यातक वहन करें। अनुमान है कि इस 50 फीसदी टैरिफ से अमेरिका में बिकने वाले भारतीय सामानों की अंतिम लागत में 30 से 35 फीसदी तक की भारी बढ़ोतरी हो सकती है।
भारत की वेलस्पन लिविंग, गोकलदास एक्सपोर्ट्स, इंडो काउंट और ट्राइडेंट जैसी प्रमुख निर्यातक कंपनियां, जिनकी 40 से 70 फीसदी तक की बिक्री अमेरिकी बाजार पर निर्भर है, इस फैसले से सीधे तौर पर प्रभावित होंगी।
बांग्लादेश और वियतनाम को मिल सकता है फायदा
विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी ऑर्डर के होल्ड होने से भारत के निर्यात व्यापार में 40 से 50 फीसदी तक की भारी गिरावट दर्ज की जा सकती है। भारत से सबसे ज्यादा मात्रा में कपड़े और परिधान ही अमेरिका को निर्यात किए जाते हैं। अब इस टैरिफ के कारण भारत का ऑर्डर बांग्लादेश और वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्धी देशों को मिलने की प्रबल आशंका है।
यह इसलिए भी है क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप ने जहां भारत पर 50 फीसदी का भारी-भरकम टैरिफ लगाया है, वहीं बांग्लादेश और वियतनाम पर यह शुल्क महज 20 फीसदी है। भारत ने ट्रंप प्रशासन के इस फैसले को अतार्किक बताते हुए इसका कड़ा विरोध किया था, लेकिन ट्रंप अपने फैसले पर अड़े हुए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक दोनों देशों के बीच कोई व्यापक ट्रेड डील नहीं हो जाती, तब तक इस समस्या के सुलझने के आसार फिलहाल कम ही दिखाई दे रहे हैं।
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