Himachal: सराज में आपदा पीड़ितों से मिले सीएम सुक्खू, हर प्रभावित को नया घर देने का वादा

मंडी। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने बुधवार को मंडी जिले के आपदाग्रस्त सराज विधानसभा क्षेत्र का दौरा किया। 30 जून को बादल फटने और बाढ़ से हुई भारी तबाही का जायजा लेने के लिए मुख्यमंत्री बगस्याड़ में प्रभावितों के बीच पहुंचे और जमीनी हकीकत का आकलन किया। इस दौरान उन्होंने एक बड़ी घोषणा करते हुए कहा कि सरकार आपदा में अपना घर खो चुके हर प्रभावित परिवार को नया मकान बनाकर देगी, लेकिन इस पुनर्वास कार्य में जमीन की उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रही है।

प्रभावितों से बात करते हुए मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया, “राज्य सरकार के पास खुद की जमीन नहीं है, इस क्षेत्र का अधिकतर इलाका वन भूमि के अंतर्गत आता है। ऐसे में मकानों के निर्माण के लिए जमीन हस्तांतरण हेतु दिल्ली से, यानी केंद्र सरकार से अनुमति लेना आवश्यक है।” उन्होंने कहा कि यह एक प्रक्रियात्मक बाधा है, लेकिन उन्होंने प्रभावित परिवारों को दृढ़ता से भरोसा दिलाया कि उन्हें छत मुहैया कराने में किसी भी प्रकार की देरी नहीं होने दी जाएगी और सरकार इस प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी।

मुख्यमंत्री ने आपदा में हुए अन्य नुकसानों पर भी संज्ञान लिया और राहत उपायों की घोषणा की। उन्होंने कहा कि जिन परिवारों के मवेशी इस आपदा में मारे गए हैं, उन्हें भी सरकार उचित मुआवजा प्रदान करेगी। इसके अलावा, भविष्य में इस तरह के नुकसान को रोकने के लिए, सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील स्थानों पर मजबूत डंगे (रिटेनिंग वॉल) लगाए जाएंगे। श्री सुक्खू ने मौके पर मौजूद अधिकारियों को राहत और पुनर्वास कार्यों में तेजी लाने और यह सुनिश्चित करने के सख्त निर्देश दिए कि कोई भी प्रभावित व्यक्ति या परिवार अनदेखा न रह जाए।

लोगों से संवाद करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, “यह आपदा अभूतपूर्व है और इसने भारी नुकसान पहुंचाया है, लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूं कि संकट की इस घड़ी में सरकार पूरी ताकत और संवेदना के साथ आपके साथ खड़ी है।” मुख्यमंत्री के इस दौरे और उनके आश्वासनों से स्थानीय लोगों में एक नई उम्मीद जगी है। हालांकि, सरकार की मकान बनाने की प्रतिबद्धता के बावजूद, जमीन अधिग्रहण और वन भूमि की मंजूरी को लेकर अनिश्चितता अभी भी चिंता का एक प्रमुख विषय बनी हुई है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि सरकार जमीन की चुनौती से कैसे निपटती है और प्रभावितों को कब तक स्थायी आशियाना मिल पाता है।

 

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