चंडीगढ़। पंजाब सरकार द्वारा श्री गुरु ग्रंथ साहिब सहित सभी धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के खिलाफ एक सख्त कानून लाने की तैयारी की जा रही है, लेकिन इस बिल के सबसे महत्वपूर्ण पहलू, यानी सज़ा के प्रावधान को लेकर सरकार के भीतर ही सहमति नहीं बन पा रही है। इस आंतरिक मतभेद के चलते बिल का मसौदा अंतिम रूप नहीं ले पा रहा है, जिससे इसके विधानसभा सत्र में पेश होने की संभावना कम हो गई है।
सूत्रों के अनुसार, सज़ा की मात्रा को लेकर सरकार में दो अलग-अलग विचार हैं। एक ओर, मुख्यमंत्री भगवंत मान बेअदबी के दोषियों के लिए मृत्युदंड जैसी कठोरतम सज़ा का प्रावधान चाहते हैं। वहीं, पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि ऐसे गंभीर अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सज़ा अधिक उपयुक्त और कानूनी रूप से तर्कसंगत होगी। इस मुद्दे पर एडवोकेट जनरल (एजी) और लीगल रिमेंबरेंसर (एलआर) की कानूनी राय भी अभी तक नहीं आई है, जिससे प्रक्रिया में और देरी हो रही है।
कैबिनेट मंत्री हरपाल चीमा ने इस मामले पर सरकार का पक्ष रखते हुए कहा है कि वे जल्दबाजी में कोई कमजोर कानून नहीं बनाना चाहते। उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार अधिकारियों और कानूनविदों के एक पैनल से सलाह ले रही है ताकि एक ऐसा “फुल-प्रूफ” मसौदा तैयार किया जा सके जो कानूनी जांच में खरा उतरे। उन्होंने पिछली अकाली-भाजपा और कांग्रेस सरकारों का उदाहरण दिया, जिन्होंने अपने कार्यकाल में ऐसे विधेयक तो पारित किए, लेकिन वे कानून नहीं बन सके। चीमा ने कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार उन गलतियों को दोहराना नहीं चाहती, भले ही इसके लिए विधानसभा सत्र को बाद में बढ़ाना पड़े।
इस बिल को लेकर एक और बड़ी कानूनी दुविधा यह है कि क्या राज्य सरकार अपने स्तर पर ऐसा कानून बना सकती है, या उसे केंद्र द्वारा लागू की गई नई भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में ही संशोधन का प्रस्ताव करना होगा। इसके अलावा, अधिकारी इस बात पर भी विचार कर रहे हैं कि “धार्मिक ग्रंथों” की परिभाषा कैसे तय की जाए, क्योंकि श्री गुरु ग्रंथ साहिब की पवित्रता और विशिष्टता अन्य धार्मिक पुस्तकों से भिन्न है, जो बाजार में व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हैं। इन सभी कानूनी और वैचारिक बाधाओं के कारण, बिल का भविष्य फिलहाल अनिश्चित बना हुआ है।