Pakistan: पाकिस्तान पर रिकॉर्ड कर्ज का बोझ, आर्थिक संकट गहराया

इस्लामाबाद। कर्ज के दलदल में फंसा पाकिस्तान गहरे आर्थिक संकट से जूझ रहा है। देश का कर्ज अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया है, जिससे उसकी वित्तीय स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। पाकिस्तान दुनियाभर से कर्ज लेकर विकास की बजाय आतंकवाद पर खर्च करता रहा है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना होती रही है।

पाकिस्तान सरकार द्वारा जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, जून 2025 में समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में देश की आर्थिक वृद्धि दर महज 2.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष यह 2.5 प्रतिशत थी। सरकार ने शुरुआत में 3.6 प्रतिशत वृद्धि दर का लक्ष्य रखा था, जिसे बाद में घटाकर 2.7 प्रतिशत कर दिया गया। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025 और 2026 में पाकिस्तान की आर्थिक वृद्धि दर क्रमशः 2.6 प्रतिशत और 3.6 प्रतिशत रहेगी, जबकि प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की सरकार का लक्ष्य 4.2 प्रतिशत वृद्धि दर हासिल करना है।

सर्वेक्षण के मुताबिक, 31 मार्च 2025 तक पाकिस्तान का कुल कर्ज 76,00700 करोड़ पाकिस्तानी रुपये तक पहुँच गया है, जो उसके इतिहास में सबसे अधिक है। पिछले चार सालों में देश का कर्ज लगभग दोगुना हो गया है, जबकि पिछले दस सालों में यह लगभग पाँच गुना बढ़ा है। 2020-21 में पाकिस्तान पर 39,86000 करोड़ पाकिस्तानी रुपये का कर्ज था।

आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2025 की पहली, दूसरी और तीसरी तिमाही में पाकिस्तान की जीडीपी वृद्धि दर क्रमशः 1.37 प्रतिशत, 1.53 प्रतिशत और 2.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। लगातार तीसरे साल पाकिस्तान की आर्थिक वृद्धि दर कम रहने की आशंका है। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय संगठनों और मित्र देशों से लगातार राहत पैकेज की मांग करता रहा है। प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने स्वीकार किया है कि जब भी वे किसी मित्र देश से संपर्क करते हैं, तो उन्हें लगता है कि पाकिस्तान पैसे मांगने आया है।

भारत लगातार IMF और विश्व बैंक जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह मुद्दा उठाता रहा है कि पाकिस्तान वैश्विक सहायता राशि का दुरुपयोग भारत के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए कर रहा है। विश्व बैंक के अनुसार, भारत ने रिकॉर्ड संख्या में लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है, जबकि पाकिस्तान की लगभग 45 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है, जिसमें से 16.5 प्रतिशत लोग अत्यधिक गरीबी में जी रहे हैं।

 

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