
प्रयागराज: महाकुंभ 2025 का आगाज़ हो चुका है और प्रयागराज का पवित्र संगम तीर्थ नगरी आस्था के रंग में डूब गई है। लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी में डुबकी लगाकर अपने पापों का प्रायश्चित कर रहे हैं, मोक्ष की कामना कर रहे हैं। लेकिन इस महाकुंभ में श्रद्धा और भक्ति के इस अथाह सागर के बीच कुछ ऐसे चेहरे भी हैं जो अपनी अनूठी साधनाओं, त्याग और तपस्या से सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं। ये हैं महाकुंभ के वो साधु-संत जिनकी कहानियां अद्भुत और प्रेरणादायक हैं। तंबुओं की इस विशाल नगरी में, जहाँ आध्यात्मिकता का माहौल अपने चरम पर है, ये संत अपनी तपस्या और त्याग की अमर गाथाएं लिख रहे हैं।
रुद्राक्ष बाबा – सवा दो लाख रुद्राक्षों का भार:
कोट का पुरा पंजाब से पधारे श्रीमहंत गीतानंद गिरि, जिन्हें ‘सवा लाख रुद्राक्ष वाले’ के नाम से भी जाना जाता है, महाकुंभ में अपनी अनूठी साधना से सबको आश्चर्यचकित कर रहे हैं। उनके सिर पर सवा दो लाख रुद्राक्षों की मालाओं का भार है, जिनका वजन लगभग 45 किलो है। 2019 के अर्धकुंभ में उन्होंने 12 साल तक अपने सिर पर रुद्राक्ष धारण करने का संकल्प लिया था। भक्तों द्वारा चढ़ाए गए रुद्राक्षों की मालाएं उनके सिर पर एक विशाल मुकुट के समान दिखाई देती हैं। श्रीमहंत गीतानंद गिरि बताते हैं कि वह प्रतिदिन 12 घंटे तक इस भार को अपने सिर पर धारण करते हैं। उनका कहना है कि यह साधना सनातन धर्म की रक्षा और जन कल्याण के लिए है। शुरुआत में उनका लक्ष्य सवा लाख रुद्राक्ष धारण करने का था, लेकिन अब यह संख्या सवा दो लाख को पार कर चुकी है। उनकी यह अनोखी तपस्या महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कौतुहल का विषय बनी हुई है।
निर्मल बाबा – 12 वर्षों से अन्न का त्याग:
तपोनीधि पंचायती आनंद अखाड़ा के महंत बाबा निर्मल गिरी अपनी कठोर तपस्या के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने 12 वर्षों से अन्न का त्याग कर रखा है और केवल फलाहार पर ही जीवन निर्वाह कर रहे हैं। बाबा निर्मल गिरी के अनुसार, यह त्याग उन्होंने भारत को सनातन राष्ट्र बनाने के अपने संकल्प को पूरा करने के लिए किया है। केवल 35 वर्ष की आयु में ही उन्होंने 10 वर्ष की अल्पायु में ही संन्यास की दीक्षा ले ली थी। वह बताते हैं कि उनके गुरु ने उन्हें उनकी माँ से भिक्षा में मांगा था। तब से लेकर आज तक वह साधना के पथ पर अग्रसर हैं। बाबा निर्मल गिरी अपनी इस साधना को शिव को प्रसन्न करने की हठ योग साधना बताते हैं। उनकी तपस्या और त्याग की भावना महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

इनवायरमेंट बाबा – पर्यावरण के रक्षक:
आवाहन अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अरुण गिरि, जिन्हें ‘इनवायरमेंट बाबा’ के नाम से जाना जाता है, पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी समर्पण भावना के लिए प्रसिद्ध हैं। 15 अगस्त 2016 को उन्होंने मां वैष्णो देवी मंदिर से कन्याकुमारी तक पदयात्रा की थी और इस दौरान 27 लाख पौधों का वितरण और रोपण किया था। अब तक वह लगभग एक करोड़ पौधे लगा चुके हैं। महाकुंभ में भी उनका लक्ष्य 51 हजार पौधे वितरित करना है। स्वामी अरुण गिरि का मानना है कि पर्यावरण का संरक्षण धरती पर जीवन बचाने के लिए आवश्यक है। उनका सोने के प्रति प्रेम भी जगजाहिर है, वह अपने शरीर पर सोने के आभूषण धारण करते हैं, जिनमें सोने की माला, अंगूठी, हीरे जड़ित घड़ी, सोने के कड़े और बाजूबंद शामिल हैं। चांदी का धर्म दंड हमेशा उनके हाथ में रहता है। स्फटिक और क्रिस्टल की मालाएं उनकी छवि को और भी आकर्षक बनाती हैं।
इंजीनियरिंग बाबा – विज्ञान और अध्यात्म का संगम:
महाकुंभ में एक और अनोखा चेहरा है जूना अखाड़ा के युवा संन्यासी का, जिन्हें ‘इंजीनियरिंग बाबा’ के नाम से जाना जाता है। आईआईटी बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद अभय सिंह नामक इस युवा ने जीवन के अंतिम सत्य की खोज में संन्यास का मार्ग अपना लिया। साधारण वेशभूषा और गहन चिंतनशील व्यक्तित्व वाले इंजीनियरिंग बाबा की बातों में विज्ञान और आध्यात्म का अनूठा संगम दिखाई देता है। उनका मानना है कि विज्ञान सत्य तक पहुँचने का एक माध्यम हो सकता है, लेकिन अंतिम सत्य आत्मज्ञान से ही प्राप्त होता है। हरियाणा से निकलकर आईआईटी मुंबई तक का सफ़र और फिर संन्यास लेने की उनकी कहानी लोगों को प्रेरित करती है.
महाकुंभ 2025 आस्था, भक्ति और त्याग का एक अद्भुत संगम है। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को न केवल पवित्र संगम में डुबकी लगाने का अवसर मिलता है, बल्कि ऐसे अनूठे साधु-संतों के दर्शन का सौभाग्य भी प्राप्त होता है, जो अपनी साधनाओं से समाज को एक नई दिशा दिखा रहे हैं। इन संतों की कहानियां हमें जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने और आध्यात्मिकता के पथ पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं।