शिमला। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार के वाटर सेस अधिनियम को असंवैधानिक ठहराते हुए निरस्त कर दिया है। हाई कोर्ट के समक्ष विद्युत उत्पादन से जुड़े भारत सरकार के उपक्रमों और निजी विद्युत कंपनियों ने याचिकाएं दायर की थीं कि सेस नियम विरुद्ध है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने 39 कंपनियों की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए अधिनियम के प्रविधानों व नियमों को रद कर उगाही राशि चार सप्ताह के भीतर वापस करने के आदेश भी दिए हैं।
कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान के तहत प्रदेश सरकारों को इस तरह के कानून बनाने का अधिकार नहीं है। एनटीपीसी, बीबीएमबी, एनएचपीसी व एसजेवीएनएल ने दलील दी थी कि राज्य सरकार के पास यह अधिकार नहीं है कि पानी पर कर नहीं लगा सकती जिसका उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जाना हो। प्रदेश सरकार केवल उत्पादित बिजली पर ही कर या सेस लगाने की शक्तियां रखती है।
कोर्ट को बताया गया था कि 25 अप्रैल 2023 को केंद्र सरकार ने पाया था कि कुछ राज्यों में भारत सरकार के उपक्रमों पर सेस वसूला जा रहा है। केंद्र सरकार ने राज्य के सभी मुख्य सचिवों को निर्देश दिए थे कि भारत सरकार के उपक्रमों से वाटर सेस न वसूला जाए।
आरोप लगाया था कि राज्य सरकार केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन नहीं कर रही है। इससे पहले प्रदेश में निजी जल विद्युत कंपनियों ने भी हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम को चुनौती दी थी। निजी जल विद्युत कंपनियों ने आरोप लगाया था कि पनबिजली परियोजना पर वाटर सेस लगाना संविधान के प्रविधानों के विपरीत है।
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