शिमला। जलविद्युत परियोजनाओं से जल उपकर लेने के मुद्दे पर प्रदेश व केंद्र सरकार के बीच रार और ज्यादा बढ़ गई है। उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने स्पष्ट कहा है कि वाटर सेस के मामले पर केंद्र की बात नहीं मानेंगे। केंद्र सरकार बिजली कंपनियों को गुमराह कर रही है। संवैधानिक तौर पर क्या सही है, यह केंद्र सरकार नहीं, अदालत तय करेगी। यह मामला प्रदेश हाईकोर्ट में विचाराधीन है। ऐसे में केंद्र इस मामले पर जल्दबाजी न करे।
प्रदेश सरकार जल उपकर आयोग का नाम बदलकर जल आयोग करेगी। पानी से संबंधित कई मुद्दे हैं, जो जल आयोग के अधीन लाए जाएंगे। ऊर्जा मंत्रालय ने 25 अक्टूबर को पत्र जारी कर वाटर सेस को अवैध और असंवैधानिक बताया था और इस पर रोक लगाने का निर्देश दिया था।
प्रदेश की सुक्खू सरकार ने सत्ता संभालते ही जलविद्युत परियोजनाओं पर वाटर सेस लगाने का निर्णय लिया था। इससे प्रदेश में स्थापित 173 परियोजनाओं से वार्षिक करीब 2000 करोड़ रुपये की आय होने की उम्मीद है।
वहीं, ऊर्जा मंत्रालय ने संविधान का हवाला देते हुए बिजली उत्पादन पर वाटर सेस व अन्य शुल्क लगाने को राज्य के क्षेत्राधिकार से बाहर बताया है। ऊर्जा मंत्रालय ने इससे पहले 25 अप्रैल को भी पत्र भेजा था। प्रदेश सरकार ने इसी वर्ष विधानसभा में वाटर सेस को लेकर विधेयक पारित कर राज्य जल उपकर आयोग स्थापित किया था।