देहरादून। उच्च शिक्षा विभाग के लेक्चरर और कई संगीन मामलों में भ्रष्टाचार के आरोपी और जेल में रह चुके विवादित अफसर डॉ मृत्युंजय मिश्रा को आयुर्वेदिक विवि का ओएसडी बनाने पर कांग्रेस समेत सोशल मीडिया पर विरोध तेज हो गया है। मिश्रा की नई ताजपोशी से उपजे विवाद से सीएम धामी को भी अवगत करवाया जा चुका है।
कांग्रेस का कहना है कि मृत्युंजय मिश्रा के अन्य विभाग में अटैचमेंट को लेकर भी सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। शिक्षा विभाग में अटैचमेंट खत्म होने के आदेश के बावजूद भी मृत्युंजय का मूल उच्च शिक्षा विभाग में जॉइन नहीं करने पर भी सिस्टम कठघरे में खड़ा है। आयुष विभाग के इस फैसले को लेकर कांग्रेस ने जीरो टॉलरेन्स पर भी कड़े प्रहार किए है। कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता मथुरा दत्त जोशी ने कहा कि भ्र्ष्टाचार में लिप्त व ढाई साल जेल में रह चुके मृत्युंजय को आयुर्वेद विवि का ओएसडी बना देने से नौकरशाहों की मंशा का साफ पता चल रहा है।
जोशी ने कहा कि सरकार के अधिकारियों ने भृष्ट लोगों के साथ समझौता कर लिया है। उन्होंने कहा कि त्रिवेंद्र रावत के समय मृत्युंजय को जेल हुई थी। जबकि मृत्युंजय के तत्कालीन मुख्य सचिव ओमप्रकाश से गहरे रिश्ते थे। लेकिन भ्र्ष्टाचार के मामले में त्रिवेंद्र सरकार ने मिश्रा को जेल भेज। और अबभाजपा की ही सरकार के अधिकारी मिश्रा को इनाम दे रहे हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि 2013 से 2017 तक आयुर्वेदिक यूनिवर्सिटी में कुल सचिव रहते हुए मृत्युंजय मिश्रा पर सरकारी धन का गबन का आरोप लगा। विजिलेंस जांच हुई,मुकदमा दर्ज हुआ।
हाईकोर्ट ने 20 हजार का जुर्माना लगाया। 29 दिसंबर 2021 को जब हरक सिंह रावत आयुष मंत्री थे । उस समय चंद्रेश यादव अपर सचिव आयुष थे। मिश्रा को फिर से आयुर्वेदिक यूनिवर्सिटी में कुलसचिव नियुक्त किया गया । किंतु यूनिवर्सिटी के कुलपति जोशी ने मिश्रा को ज्वाइनिंग देने से इंकार कर दिया। मामला राजभवन तक भी पहुंचा।
25 जनवरी 2022 को मुख्य सचिव ने मिश्रा को शासन में अपर सचिव आयुष चंदेश यादव के साथ अटैच कर दिया। इसके बाद मौजूदा कुलपति के विरोध को अनसुना करते हुए मृत्युंजय को आयुर्वेद विवि में ओएसडी बना दिया।
जोशी का कहना है कि मोच साल पहले मृत्युंजय ने अपनी कार में स्वंय आग लगाकर जिन लोगों को आरोपी बनाया था वो लोग उस दिन देहरादून से बाहर थे। इस मामले की भी जांच दबा दी गयी।
गौरतलब है कि मृत्युंजय मिश्रा कई साल से अटैचमेंट पर चल रहे हैं। कमोबेश हर सरकार में मृत्युंजय की धमक रही। और इस बार भी उच्च शिक्षा मंत्री ने कई कार्मिकों के अटैचमेंट खत्म कर दिए लेकिन मृत्युंजय को छेड़ने की उनकी भी हिम्मत नहीं हुई। हालांकि, कुछ साल पहले मृत्युंजय को मूल विभाग में भेजे जाने के आदेश हुए थे। लेकिन मृत्युंजय की मजबूत पैठ के चलते वह आदेश हवा हवाई हो गया।
बहरहाल, विपक्ष के विरोध व सोशल मीडिया में जारी टिप्पणी से शासन के इस फैसले की धज्जियां उड़ती नजर आ रही है। और सरकार के लिए यह मसला एक नया सिरदर्द बनता जा रहा है।
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