Uttarakhand Election analysis: उत्तराखंड का अगला मुख्यमंत्री कौन ? विधायकों में से या फिर सांसद – The Hill News

Uttarakhand Election analysis: उत्तराखंड का अगला मुख्यमंत्री कौन ? विधायकों में से या फिर सांसद

तमाम आवाम, एक आवाज- हमारा अगला मुख्यमंत्री कौन। उत्तराखंड मे एक कार्यकाल में तीन तीन मुख्यमंत्री बदलने वाली भारतीय जनता पार्टी अपने सीएम चहरे को लेकर ही इस समय गहन चिंतन मे पड़ गई है। प्रदेश में भाजपा ने कांग्रेस के उपर तो बहुमत हासिल कर ली लेकिन सूबे के मुख्य मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी धवस्त हो गए अपने ही विस क्षेत्र में ऐसे में सीएम पद की शपथ कौन लेगा इस पर सस्पेंस खड़ा हो गया है। धामी को दरकिनार किया जाएगा या दायित्व एक दफा फिर उनके कंधों पर आएगा या फिर उत्तराखंड सीएम की ग्ददी पर एक नया चहृरा बैठने को है- इन तमाम सवालों के जवाब इस रिपोर्ट में-

 धामी की वापसी मुमकिन ? 

नतीजे खुलने के बाद से ही राज्य के कईं लोगों के मन मे सवाल है कि क्या पुष्कर सिंह धामी हारने के बावजूद सीएम चुने जा सकते हैं, अगर हां तो किस आधार पर। तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये मुमकिन है और सिर्फ मुमकिन ही नही है बल्कि खबरों के मुताबिक तो धामी ही इस समय अगले मुख्यमंत्री के लिए सबसे बड़ा चेहरा हैं क्यों 3 कारण मे समझिए-

1. भाजपा संगठन के भीतर ही मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नाम की पैरवी चल रही है। जानकारी के मुताबिक भाजपा के कईं नेता आलाकमान पर फिर से धामी को मुख्यमंत्री बनाने का प्रेशर बना रहे हैं। यानी भीतरी लड़ाई मे तो धामी के कईं सैनिक उनके लिए मैदान मे खड़े हो गए हैं। सबसे बड़ी बात तो ये है कि चम्पावत विस से चुनाव जीतते ही भाजपा प्रत्याशी कैलाश गहतोड़ी ने खटीमा विस से हारे सीएम पुष्कर सिंह धामी के लिए सीट छोड़ने का ऐलान तक कर डाला है। उनका कहना है कि अगर सीएम चुनाव लड़ने को राजी होते हैं तो वह इस्तीफा देने को तैयार हैं। गहतोड़ी के मुताबिक प्रदेश में आज जितनी भी सीटें भाजपा के पक्ष में आई हैं वह धामी की बदौलत हैं।

2. दूसरा कारण है उनके पक्ष मे दिए जा रहे तर्क। धामी को सीएम बनाए जाने के पक्ष में यह तर्क भी दिया जा रहा है कि चुनाव के दौरान उनके पास इतना समय नहीं था कि वह अपनी विधानसभा सीट पर समय देते। उन्होंने पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार किया। उनकी पहले की जीत इस तर्क को बल भी देती है.

3. और आखिरी में कुछ आरोप भी उनकी हार के प्रभाव को दबाने की कोशिश कर रहे हैं। दरअसल, बीजेपी को स्पष्ट जनादेश के बाद भी धामी की हार के पीछे पार्टी की आपसी खींचातानी और कुछ सीनियर नेताओं का मिलकर उन्हें हराने के लिए काम करना माना जा रहा है।

यही तीन बड़े कारण है जिनका हवाला देते हुए दल फिर से धामी पर दांव खेल सकता है। हालाकि सियासी फिजाओं मे कुछ ऐसी भी खबरें घुली हैं कि धामी तो नही लेकिन पार्टी के पास तीन विधायक ऐसे हैं जिनमें से एक पर अगर हाईकमान सहमति दिखाता है तो उसे अगला सीएम चुना जा सकता है। कौन है ये तीन चहरे –

मुख्यमंत्री रेस में चार विधायक 

खबरों के मुताबिक अगर पुष्कर सिंह धामी को कमान नही सौंपी जाती तो जिसे जिम्मा मिल सकता है उनमे सबसे पहले नाम उत्तराखंड बीजेपी के बड़े नेता सतपाल महाराज का है।

सतपाल महाराज – कांग्रेस से भाजपा में गए सतपाल महाराज 2017 में चौबट्टाखाल सीट से जीत हासिल कर कैबिनेट मंत्री बने थे। एक बार फिर महाराज चौबट्टाखाल सीट से बीजेपी के टिकट पर जीते हैं. उन्होंने लगभग 10 हजार वोटों से कांग्रेस के केसर सिंह को हराया है. उनका राजनीतिक अनुभल और दबदबा उन्हे सीएम रेस मे आगे रखता है। हालाकि उनके अलावा रेस में धन सिंह रावत भी हैं-

धन सिंह रावत – धन सिंह रावत ने कांटे के मुकाबले में कांग्रेस के गणेश गोडियाल को हराया है. धन सिंह रावत को 29618 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के गणेश गोडियाल को 29031 वोट मिले. इस तरह से उन्होंने 587 वोट से कांग्रेस के प्रत्याशी को हराया. खास बात ये है कि . इससे पहले जब जुलाई 2022 में भाजपा सीएम बदल रही थी तब भी धन सिंह रावत का नाम नए मुख्यमंत्री के लिए उठा था। हालाकि तब धामी बाजी मार ले गए थे, देखना ये है कि इस दफा दोनो मे किसे सीएम बनाया जाता है। उधऱ खबरें ऐसी भी हैं कि रेस में बीजेपी के द‍िग्‍गज नेता ब‍िशन स‍िंह चुफाल भी हैं।

ब‍िशन स‍िंह चुफाल – उत्‍तराखंड का गठन हुआ तो ब‍िशन स‍िंह चुफाल ने 2002, 2007, 2012 और 2017 के चुनाव में भी डीडीहाट सीट से जीत दर्ज की थी एक बार फिर चुफाल ने निर्दलीय प्रत्याशी किशन भंडारी समेत विपक्ष को करारी शिकस्त दी है। तो जीत का जो इतिहास लेकर वो चलते हैं उसके कारण सीएम पद के प्रबल दावेदार उन्हे भी माना जा रहा है। हालाकि बीजेपी नेता कह रहे हैं कि सीएम पद का फैसला आलाकमान करेगा. अब आलाकमान सिर्फ विधायकों मे किसी को चुने जरुरी नही। . खबर यह भी है कि कि पार्टी किसी को ऊपर से राज्य में सीएम पद की कुर्सी दे सकता है और अगर ये सच है तो दो सबसे बड़े नाम कौन है ये भी आपको बताते चलें-

ऋतु खंडूडीः पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी की बेटी ऋतु खंडूड़ी कोटद्वार से जीती हैं। उन्होंने 2012 में उनके पिता को सीएम रहते हुए हराने वाले कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह नेगी को करारी मात दी है। ऋतु वर्तमान में प्रदेश महिला अध्यक्ष भी हैं। उनके पिता की विरासत वह संभाल रही हैं। भाजपा ने उनकी सीट यमकेश्वर से बदल कर कोटद्वार की, लेकिन वह वहां से भी जीत गई, जो उनके पक्ष में जाता है। तीरथ सिंह रावत को जब केंद्र ने सीएम पद से हटाया था तब भी ऋतु को दिल्ली बुलवाया गया था। इस बार उनका युवा होने के साथ दो बार का विधायक और ब्राह्मण होने का फायदा मिल सकता है।

 

 सीएम रेस मे बाहर से entry ? 

इन दो नामों में पहला नाम है अजय भट्ट का।

अजय भट्ट- उत्तराखंड के नैनीताल-ऊधमसिंह नगर लोकसभा से सांसद अजय भट्ट भाजपा के बेहद वरिष्ठ और कर्मठ नेता माने जाते हैं। संगठन पर उनकी पकड़ और कार्यशैली को भी 2017 मे भाजपा को मिली एक तरफा जीत की बड़ी वजह मानी जाती है। अजय भट्ट 2019 में 17वीं लोकसभा में नैनीताल-ऊधमसिंहनगर से पहली बार सांसद चुने गए। इस चुनाव में उन्होंने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जैसे दिग्गज को लगभग साढ़े तीन लाख वोटों से हराया और इसी के साथ प्रदेश में सबसे ज्यादा मतों से जीतने वाले सांसद बने। कईं अहम दायित्व वो निभा चुके है औऱ निभा रहे हैं इसलिए उत्तराखंड की कमान उन्हे सौंपी जा सकती है। भट्ट के अलावा फिर अगर कोई दूसरा चहरा इतना मजबूत है तो वो है राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का

अनिल बलूनी- धन सिंह रावत की तरह ही अनिल बलूनी के बारे में भी कहा गया था कि वो उत्तराखंड की राजनीति में उठा-पठक के बीच मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं. अनिल बलूनी उत्तराखंड से राज्यसभा और बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी हैं. उन्होंने उत्तराखंड की जमीन से ही सियासत सीखी है. बलूनी को पीएम मोदी और अमित शाह के करीबियों में गिना जाता है। और माना जाता है कि माहिर हैं वो जनता की नब्ज टटोलने मे तो मुमकिन है कि उन्हे सीएम कुर्सी पर बैठाया जा सकता है।

लेकिन फिर भी जब तक संगठन किसी एक चहरे का चुनाव नही कर देता, जब तक सीएम कुर्सी पर बैठने वाले नेता के नाम का ऐलान नही हो जाता तब तक पूरे प्रदेश की निगाहें इसी सवाल पर लगातार टिकी रहने वाली हैं कि किसे उनके प्रदेश की कमान सोंपी जा रही है। लाजमी भी है क्योंकि विडंबना है लेकिन मुद्दा सिर्फ ये नही रहता उत्तराखंड मे कि मुख्यमंत्री कौन होगा ये भी रहता है कि अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगा भी या नही….

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