हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में बच्चों को दिए जाने वाले मिड-डे मील की गुणवत्ता को लेकर एक बड़ा और कड़ा फैसला लिया गया है। राज्य खाद्य आयोग ने स्कूलों में दोपहर के भोजन में सब्जी के नाम पर केवल आलू परोसने की प्रथा पर सख्त रुख अपनाया है। आयोग ने साफ कर दिया है कि अगर किसी स्कूल में बच्चों को हरी सब्जी की जगह बार-बार आलू परोसा गया तो संबंधित स्कूल प्रशासन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। आयोग ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए स्पष्ट किया है कि मिड-डे मील योजना का असली मकसद बच्चों का केवल पेट भरना नहीं है बल्कि कुपोषण के खिलाफ लड़ाई लड़ना और उन्हें संतुलित एवं पोषक आहार उपलब्ध कराना है।
आयोग के ध्यान में यह बात आई है कि प्रदेश के कई स्कूलों में खानापूर्ति करने के लिए सब्जी के विकल्प के तौर पर बच्चों को अधिकांश समय केवल आलू ही खिलाया जा रहा है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि बच्चों के शरीर में पोषक तत्वों की जगह केवल स्टार्च ही जा रहा है जो उनके स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त नहीं है। गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में नर्सरी से लेकर आठवीं कक्षा तक पढ़ने वाले करीब साढ़े चार लाख बच्चों को हर दिन मिड-डे मील दिया जाता है। सरकारी मानकों के मुताबिक बच्चों की थाली में प्रोटीन, विटामिन और खनिज तत्वों से भरपूर भोजन होना अनिवार्य है। निर्देशों में साफ कहा गया है कि भोजन में हरी सब्जियां, दाल, दूध या प्रोटीन के अन्य स्रोतों को शामिल किया जाना चाहिए।
विशेषज्ञों की राय इस मामले में बेहद चिंताजनक है। उनका कहना है कि चावल और आलू दोनों ही स्टार्च के मुख्य स्रोत हैं। इनसे बच्चों को ऊर्जा तो मिल जाती है और पेट भरने का अहसास भी होता है लेकिन शरीर के विकास के लिए जरूरी प्रोटीन, आयरन, विटामिन-ए और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व उन्हें नहीं मिल पाते। लंबे समय तक ऐसा आहार लेने से बच्चों की शारीरिक लंबाई और मानसिक वृद्धि पर बुरा असर पड़ता है।
राज्य खाद्य आयोग की यह सख्ती यूं ही नहीं है बल्कि कुपोषण के आंकड़ों ने उन्हें सतर्क कर दिया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़े बताते हैं कि हिमाचल प्रदेश में पांच वर्ष से कम आयु के 28.4 प्रतिशत बच्चे बौने यानी अपनी उम्र के हिसाब से कम कद के हैं। वहीं 11 प्रतिशत बच्चे अपनी लंबाई के हिसाब से बहुत दुबले हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि 25.5 प्रतिशत बच्चे कम वजन की श्रेणी में आते हैं। इसका सीधा मतलब है कि प्रदेश का हर चौथा बच्चा अपनी उम्र के हिसाब से कम वजन का शिकार है।
कुपोषण से निपटने के लिए राज्य खाद्य आयोग ने एक और महत्वपूर्ण कदम उठाने का फैसला किया है। आयोग का मानना है कि छुट्टियों के दौरान कई बच्चों को घर पर पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता जिससे उनकी सेहत पर असर पड़ता है। इसी को देखते हुए आयोग ने निर्णय लिया है कि वह केंद्र सरकार के सामने एक प्रस्ताव रखेगा। अगले महीने दिल्ली में होने वाली बैठक में आयोग केंद्र सरकार से मांग करेगा कि स्कूलों में छुट्टी के दिनों में भी बच्चों को मिड-डे मील का राशन मुहैया कराया जाए।
राज्य खाद्य आयोग के अध्यक्ष एसपी कत्याल ने कड़े शब्दों में कहा है कि मिड-डे मील में बच्चों को तय मानकों के अनुसार ही हरी सब्जियां और पोषक आहार मिले यह हर हाल में सुनिश्चित किया जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि बच्चों को संपूर्ण पोषण देना सरकार और समाज दोनों की सामूहिक जिम्मेदारी है। एसपी कत्याल ने चेतावनी दी है कि अगर मिड-डे मील में आलू को सब्जी मानकर परोसा गया तो इसे नियमों का उल्लंघन माना जाएगा और कार्रवाई की जाएगी।
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