हिमाचल प्रदेश में राज्य सरकार के सत्ता में तीन साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित किए गए भव्य कार्यक्रम का अब आर्थिक लेखा-जोखा सामने आने लगा है। बीते 11 दिसंबर को मंडी के ऐतिहासिक पड्डल मैदान में जन संकल्प सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस विशाल जनसभा को सफल बनाने और भीड़ जुटाने के लिए हिमाचल पथ परिवहन निगम यानी एचआरटीसी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। अब निगम ने इस आयोजन में लगी बसों और अन्य खर्चों का हिसाब लगा लिया है। एचआरटीसी ने सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग यानी जीएडी को भेजने के लिए करीब चार करोड़ रुपये का भारी-भरकम बिल तैयार कर लिया है।
मंडी में हुए इस जन संकल्प सम्मेलन में प्रदेश के कोने-कोने से लोगों को लाने की जिम्मेदारी परिवहन निगम पर थी। सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों और पार्टी कार्यकर्ताओं को रैली स्थल तक पहुंचाने और वापस ले जाने के लिए एचआरटीसी की कुल 1070 बसें किराये पर ली गई थीं। निगम प्रबंधन ने इन बसों के संचालन में हुए खर्च का ब्यौरा तैयार करते हुए इसमें डीजल का खर्च, चालक-परिचालक और अन्य स्टाफ की ड्यूटी का खर्च तथा प्रशासनिक खर्चों को भी जोड़ा है। इन सभी मदों को मिलाकर कुल राशि लगभग चार करोड़ रुपये बनी है जिसे अब सरकार से वसूलने की तैयारी है।
परिवहन निगम के लिए यह काम आसान नहीं था। निगम ने यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखते हुए अपने नियमित रूटों को भी चालू रखा और साथ ही रैली के लिए अतिरिक्त बसों की व्यवस्था सुनिश्चित की। अब देखना यह होगा कि सामान्य प्रशासन विभाग इस चार करोड़ रुपये के बिल को कितनी जल्दी मंजूरी देता है और भुगतान की प्रक्रिया कब तक पूरी होती है।
राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो भुगतान का यह मामला इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि वर्तमान सरकार ने एक नई नजीर पेश की थी। सत्ता में आने के बाद मौजूदा सरकार ने पूर्व की भाजपा सरकार के कार्यकाल में आयोजित रैलियों और कार्यक्रमों के दौरान एचआरटीसी का जो बकाया फंसा हुआ था उसे चुकता कर दिया था। इसी आधार पर उम्मीद जताई जा रही है कि मंडी जन संकल्प सम्मेलन के लिए तैयार किए गए इस बिल के भुगतान की प्रक्रिया भी जीएडी स्तर पर जल्द ही शुरू हो जाएगी।
एचआरटीसी के लिए यह भुगतान आर्थिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि निगम पहले से ही भारी वित्तीय दबाव और चुनौतियों का सामना कर रहा है। निगम प्रबंधन का स्पष्ट कहना है कि अगर सरकार की ओर से समय पर भुगतान कर दिया जाता है तो इससे कर्मचारियों की देनदारियों को निपटाने और बसों के संचालन को सुचारू बनाए रखने में बड़ी मदद मिलेगी।
परिवहन निगम की माली हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार ने जो आंकड़े पेश किए थे वे चौंकाने वाले हैं। जानकारी के अनुसार निगम को हर महीने 70 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है। अगर सालाना आधार पर देखें तो यह नुकसान 840 करोड़ रुपये तक पहुंच जाता है। वर्तमान में परिवहन निगम का कुल संचित घाटा बढ़कर 2200 करोड़ रुपये से भी अधिक हो चुका है। ऐसे में रैली का यह चार करोड़ रुपये का भुगतान निगम के लिए संजीवनी का काम कर सकता है।
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