उत्तराखंड के पहाड़ी जिले पौड़ी में इन दिनों जंगली जानवरों, खासकर गुलदार (तेंदुआ) का खौफ आम जनता के लिए मुसीबत का सबब बना हुआ है। ग्रामीण इलाकों में गुलदार की सक्रियता और हमलों के डर ने लोगों की नींद उड़ा रखी है। अपनी जान-माल की सुरक्षा को लेकर चिंतित ग्रामीणों का धैर्य अब जवाब दे गया है। इसी आक्रोश के चलते मंगलवार को लगातार तीसरे दिन भी ग्रामीणों ने अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखा। गडोली से ढांडरी लिंक मोटर मार्ग तिहारे पर इकट्ठा होकर ग्रामीणों ने सरकार और वन विभाग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। नाराज प्रदर्शनकारियों ने पौड़ी-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग को जाम कर दिया, जिससे आवागमन भी बाधित हुआ।
प्रदर्शनकारी ग्रामीणों का कहना है कि वे दहशत के साये में जीने को मजबूर हैं। उनका गुस्सा इस बात को लेकर है कि प्रशासन और वन विभाग की ओर से अभी तक कोई ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है। हाईवे जाम करते हुए प्रदर्शनकारियों ने जमकर नारेबाजी की और मांग उठाई कि क्षेत्र में आतंक का पर्याय बन चुके गुलदार को तत्काल प्रभाव से मार गिराया जाए। ग्रामीणों का स्पष्ट कहना है कि जब तक गुलदार के खतरे को खत्म नहीं किया जाता, उनका आंदोलन और गुस्सा शांत नहीं होगा।
इस प्रदर्शन के दौरान सामाजिक कार्यकर्ता विनोद दनोशी ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों और प्रशासन की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाए। उन्होंने कहा कि आंदोलन का आज तीसरा दिन है और आम जनता कड़ाके की ठंड में सड़क पर बैठने को मजबूर है, लेकिन विडंबना यह है कि जिला पंचायत सदस्य मौके से नदारद हैं। दनोशी ने बताया कि 22 नवंबर को वन विभाग की तरफ से धरना स्थल पर एक पत्र भेजा गया था। इस पत्र में विभाग ने गुलदार को ट्रेंकुलाइज (बेहोश) करने की प्रक्रिया शुरू करने की बात कही थी। हालांकि, ग्रामीण इस आश्वासन से संतुष्ट नहीं हैं। उनका आरोप है कि वन विभाग केवल तकनीकी बहाने बनाकर और कागजी कार्रवाई का हवाला देकर लोगों को गुमराह कर रहा है, जबकि हकीकत में लोगों की जान खतरे में है।
वहीं दूसरी तरफ, इस पूरे मामले पर जिला पंचायत सदस्य अनुज कुमार ने अपना पक्ष रखा है। उन्होंने जानकारी दी कि इस गंभीर मुद्दे पर उनकी गढ़वाल के डीएफओ (प्रभागीय वनाधिकारी) से बातचीत हुई है। उन्होंने दावा किया कि 22 नवंबर को ही गुलदार को ढेर करने (मारने) के आदेश जारी किए जा चुके हैं। उन्होंने ग्रामीणों को समझाने का प्रयास किया कि सरकारी कामकाज और वन विभाग की कार्रवाई एक निर्धारित प्रक्रिया के तहत होती है, जिसमें कई चरण शामिल होते हैं।
अनुज कुमार ने प्रक्रिया की जानकारी देते हुए बताया कि सबसे पहले प्रभावित क्षेत्र में पिंजरे लगाए जाते हैं और वन कर्मियों की गश्त बढ़ाई जाती है। इसके अलावा गुलदार की सही पहचान और उसकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए ट्रैप कैमरे लगाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि यदि इन सब के बावजूद गुलदार पकड़ में नहीं आता है और उसका व्यवहार अत्यधिक आक्रामक बना रहता है, तो उसे ट्रेंकुलाइज करने या अन्य आवश्यक कठोर कार्रवाई की जाती है। उन्होंने ग्रामीणों को भरोसा दिलाया कि वे उनके साथ खड़े हैं और प्रशासन की मदद से जल्द ही क्षेत्र को गुलदार के आतंक से मुक्त कराया जाएगा। फिलहाल, ग्रामीणों और प्रशासन के बीच यह गतिरोध बना हुआ है।
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