Punjab: पंजाब में पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए सरकार का कड़ा रुख, 500 करोड़ का एक्शन प्लान तैयार

अमृतसर: सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद पंजाब सरकार और जिलों के प्रशासन ने किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए कमर कस ली है. राज्य सरकार ने पराली प्रबंधन के लिए 500 करोड़ रुपये का एक्शन प्लान तैयार किया है.

पराली जलाने से रोकने के लिए ‘पराली प्रोटेक्शन फोर्स’ बनाई गई है, जिसमें 5,000 नोडल अधिकारी, 1500 क्लस्टर कोऑर्डिनेटर और 1200 फील्ड अधिकारी शामिल किए गए हैं. इन्हें राज्य के 11,624 गांवों में नजर रखकर पराली जलाने से रोकने का कार्य सौंपा गया है.

ये अधिकारी प्रतिदिन गांव-गांव जाकर जांच कर रहे हैं और मोबाइल एप से एक्शन टेकन रिपोर्ट भेज रहे हैं. पराली जलाने में सबसे आगे रहे अमृतसर के जिला प्रशासन ने डिप्टी कमिश्नर के नेतृत्व में एक टास्क फोर्स बनाई है, जिसमें ‘एयर केयर’ सेंटर के विशेषज्ञ सदस्यों को शामिल किया गया है.

टास्क फोर्स का कार्य किसानों को हर प्रकार की सहायता देना है, जिसमें उन्हें पराली प्रबंधन के लिए उपयोग में आने वाली मशीनरी प्रदान की जा रही है. इन-सीटू (खेतों में फसल के अवशेषों को मिलाना) और एक्स-सीटू (पराली को ईंधन के रूप में उपयोग करना) विधियों के संबंध में उनका समाधान किया जा रहा है, तथा विभिन्न समूहों, किसानों और सेवा प्रदाताओं के बीच तालमेल प्रदान किया जा रहा है.

टास्क फोर्स पराली जलने की घटनाओं की रियल टाइम मॉनिटरिंग कर रही है और किसानों को त्वरित सहायता पहुंचा रही है. राज्य सरकार ने पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए 663 गांवों को हॉटस्पॉट घोषित किया है. सरकार की सख्ती के बावजूद पिछले छह दिनों में राज्य में पराली जलाने के 56 मामले सामने आ चुके हैं.

पिछले वर्षों की तरह पराली जलाने के मामले में जिला अमृतसर इस बार भी सबसे आगे है. 32 मामलों के साथ अमृतसर जिले में रविवार को पराली जलाने के 3 और मामले दर्ज किए गए हैं, जिससे कुल मामले 48 से बढ़कर 56 हो गए हैं. अब तक 13 एफआईआर दर्ज की गई हैं और 13 किसानों की जमीनों पर रेड एंट्री दर्ज की गई है.

किसानों का अपना दर्द

पराली जलाने को लेकर किसानों का कहना है कि यदि वे खेतों की तैयारी जल्दी न करें तो खेतों में सब्जियां बोने में देरी होने से बाजार में सब्जियों के भाव आसमान छूने लगते हैं. उनका कहना है कि पराली बाजार में बिकती भी नहीं है और उसे संभालने के लिए प्रति एकड़ 5-6 हजार रुपया खर्च आता है.

किसानों का कहना है कि कृषि जमीन के मुकाबले सरकार के पास केवल पांच प्रतिशत मशीनरी है जो खेतों से पराली उठाने में सहायक तो है, परंतु पर्याप्त नहीं है. किसान कुलदीप सिंह ने कहा कि धान की 1121 और 1718 किस्म के बीज की पराली को खेतों में मिलाना आसान नहीं होता है.

 

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