नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने H-1B वीजा और ग्रीन कार्ड प्रोग्राम में बड़े बदलावों का संकेत दिया है, जिसका अमेरिका में रह रहे लाखों विदेशी कर्मचारियों और छात्रों, विशेष रूप से भारतीयों पर सीधा और गहरा असर पड़ेगा। आंकड़ों के अनुसार, H-1B वीजा का लगभग 70% हिस्सा भारतीय छात्रों और पेशेवरों को मिलता है।
अमेरिकी वित्त मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने H-1B वीजा प्रोग्राम को “धोखा” बताते हुए कहा है कि अब अमेरिकी नौकरियों में अमेरिकी नागरिकों को प्राथमिकता दी जाएगी। फॉक्स न्यूज से बात करते हुए लुटनिक ने कहा, “H-1B प्रोग्राम को बदलना जरूरी है। औसत अमेरिकी सालाना 75,000 डॉलर कमाता है, जबकि ग्रीन कार्ड धारक 66,000 डॉलर। हम निचले स्तर के लोगों को क्यों चुन रहे हैं?” उन्होंने घोषणा की कि ट्रंप प्रशासन अब एक ‘गोल्ड कार्ड’ लाएगा, जिसके माध्यम से देश में “सबसे काबिल लोग” ही प्रवेश कर पाएंगे।
H-1B लॉटरी खत्म, अब वेतन आधारित वीजा?
ट्रंप प्रशासन H-1B वीजा की मौजूदा लॉटरी प्रणाली को खत्म करने की योजना बना रहा है। इस नई व्यवस्था के तहत, वीजा उन लोगों को मिलेगा जो ज़्यादा वेतन वाली नौकरियों में काम करते हैं। इसका सीधा अर्थ है कि कम वेतन वाली नौकरियों में कार्यरत विदेशी कर्मचारी, जैसे कि नए स्नातक या छोटे व्यवसायों में काम करने वाले लोग, मुश्किल में पड़ सकते हैं। यह बदलाव पहले भी 2021 में प्रस्तावित किया गया था, लेकिन बाइडन प्रशासन ने इसे लागू नहीं किया था।
इसके अलावा, ग्रीन कार्ड प्रक्रिया में भी महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिलेंगे। ट्रंप का प्रस्तावित ‘गोल्ड कार्ड’ प्रोग्राम एक नया विकल्प हो सकता है, जो मेधावी और उच्च वेतन वाले कर्मचारियों को प्राथमिकता देगा। उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भी इस विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा है कि ग्रीन कार्ड किसी को अमेरिका में हमेशा रहने का हक नहीं देता, जिससे ग्रीन कार्ड धारकों के भविष्य को लेकर अनिश्चितता बढ़ गई है।
भारतीय कर्मचारियों पर सबसे ज़्यादा असर
ये बदलाव भारतीय कर्मचारियों और छात्रों के लिए गंभीर परिणाम ला सकते हैं, क्योंकि वे H-1B वीजा पर सबसे ज़्यादा निर्भर करते हैं। नए नियमों के तहत, वीजा के लिए बायोमेट्रिक जानकारी और घर का पता जैसी निजी जानकारी देना अनिवार्य होगा। साथ ही, सख्त जांच और बढ़ी हुई दस्तावेजीकरण की मांग से वीजा प्रक्रिया और भी जटिल हो जाएगी।
इस साल जनवरी में ट्रंप के सत्ता में आने के बाद से ही विदेशी कर्मचारियों और छात्रों के लिए नियम सख्त होते दिख रहे हैं। सिटिज़नशिप और इमिग्रेशन सर्विसेज़ (CIS) का वह ऑफिस, जो आप्रवासियों को तकनीकी मदद प्रदान करता था, उसे बंद कर दिया गया है। इससे वीजा प्रक्रिया में आवश्यक सहायता प्राप्त करना और भी मुश्किल हो गया है। इन प्रस्तावित परिवर्तनों से अमेरिका में काम करने और अध्ययन करने के इच्छुक भारतीयों के लिए राह काफी कठिन होने की आशंका है।
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