नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने का श्रेय लेने की कोशिश की है। उन्होंने अपनी कैबिनेट को एक “मनगढ़ंत किस्सा” सुनाते हुए दावा किया है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित परमाणु युद्ध को टाल दिया था। व्हाइट हाउस में कैबिनेट बैठक के दौरान, ट्रंप ने अपनी कथित कूटनीति का बखान करते हुए कहा कि उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी नेताओं दोनों से बात की थी, और दोनों को ही “भारी व्यापारिक टैरिफ” की चेतावनी दी थी। ट्रंप का दावा है कि उनकी इस सख्त चेतावनी ने ही दोनों देशों को पीछे हटने पर मजबूर किया।
ट्रंप ने अपने कैबिनेट सदस्यों से कहा, “मैंने पीएम मोदी से बात की, जो बहुत शानदार इंसान हैं। मैंने पूछा, ‘पाकिस्तान के साथ क्या मसला है?’ फिर मैंने पाकिस्तान से भी बात की। ये झगड़ा बरसों से, बल्कि सदियों से चला आ रहा है।” गौरतलब है कि ट्रंप भले ही कई बार यह कहते आ रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान सैंकड़ों साल से आपसी विवादों से घिरे रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि दोनों देशों को आजाद हुए अभी 80 साल भी नहीं हुए हैं। आजादी से पहले पाकिस्तान भारत का ही हिस्सा था। ट्रंप के ये दावे तथ्यों से पूरी तरह परे हैं और उनकी “फर्जी खबरों” को लेकर पहले से ही होती रही आलोचनाओं को और बढ़ावा देते हैं।
ट्रंप ने अपने दावे को आगे बढ़ाते हुए कहा कि उन्होंने पाकिस्तान को साफ तौर पर बता दिया था कि अगर तनाव कम नहीं हुआ तो अमेरिका कोई व्यापारिक सौदा नहीं करेगा। उन्होंने कहा, “मैंने कहा, अगर तुम लोग परमाणु जंग की ओर गए, तो हम तुम पर इतने भारी टैरिफ लगाएंगे कि तुम्हारा सर चकरा जाएगा।” ट्रंप के मुताबिक, उनकी इस सीधी और सख्त चेतावनी का तुरंत असर हुआ और “पांच घंटे के अंदर ही मसला हल हो गया।” हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर भविष्य में फिर से तनाव बढ़ा, तो वह इसे दोबारा रोकने के लिए तैयार रहेंगे।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान उनके कूटनीतिक दावों की एक श्रृंखला का हिस्सा है, जिसमें वह अपनी मध्यस्थता को भारत-पाकिस्तान जैसे जटिल मसलों को सुलझाने का जरिया बताते हैं। हालांकि, उनके इस दावे पर न तो भारत और न ही पाकिस्तान की ओर से कोई आधिकारिक बयान आया है, जिससे इसकी सत्यता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप अक्सर ऐसे दावे करते रहते हैं जिनका जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं होता, और यह भी उसी कड़ी का एक हिस्सा प्रतीत होता है। यह घटनाक्रम एक बार फिर यह दर्शाता है कि ट्रंप अपनी छवि चमकाने और अपनी नीतियों को प्रभावी दिखाने के लिए किस हद तक जा सकते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें ऐतिहासिक और कूटनीतिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना पड़े।
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