नई दिल्ली। बिहार में मतदाता सूची से लगभग 65 लाख लोगों के नाम हटाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बेहद कड़ा रुख अपनाया है। मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने चुनाव आयोग को इन सभी 65 लाख लोगों की सूची, उन्हें हटाए जाने के कारण सहित, सार्वजनिक करने का निर्देश दिया है, ताकि पारदर्शिता सुनिश्चित हो और किसी भी पात्र नागरिक को उसके मताधिकार से वंचित न किया जा सके।
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने चुनाव आयोग की दलीलों पर गंभीर सवाल उठाए। चुनाव आयोग ने दलील दी थी कि हटाए गए 65 लाख नामों में से 22 लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा, “अगर 22 लाख लोगों की मृत्यु हुई है, तो बूथ स्तर पर इसका खुलासा क्यों नहीं किया जाता?” अदालत ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “हम नहीं चाहते कि नागरिकों का अधिकार राजनीतिक दलों पर निर्भर हो।”
इस मामले में पारदर्शिता और जवाबदेही को सर्वोपरि बताते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को कई स्पष्ट और कड़े निर्देश जारी किए हैं:
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सार्वजनिक सूची: हटाए गए सभी 65 लाख लोगों की सूची, उनके नाम हटाए जाने के कारण के साथ, जिला निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर तुरंत सार्वजनिक की जाए।
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व्यापक प्रचार: इस जानकारी का स्थानीय समाचार पत्रों, दूरदर्शन, रेडियो और आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से व्यापक प्रचार किया जाए, ताकि यह जानकारी हर व्यक्ति तक आसानी से पहुंच सके।
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भौतिक प्रदर्शन: सभी पंचायत भवनों और प्रखंड विकास एवं पंचायत कार्यालयों में भी इन 65 लाख लोगों की बूथवार सूची प्रदर्शित की जाए, ताकि जिन लोगों की इंटरनेट तक पहुंच नहीं है, वे भी इसे देख सकें और अपने नाम की जांच कर सकें।
यह कदम यह सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है कि जिन लोगों के नाम गलती से हटा दिए गए हैं, उन्हें अपना नाम वापस जुड़वाने या आपत्ति दर्ज कराने का पर्याप्त अवसर मिल सके। अदालत का मानना है कि मतदाता सूची से नाम हटाने जैसी गंभीर प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी होनी चाहिए और इसकी जानकारी संबंधित व्यक्ति तक हर हाल में पहुंचनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जवाबदेही तय करते हुए चुनाव आयोग को सभी बूथ स्तर और जिला स्तर के अधिकारियों से इन निर्देशों के अनुपालन की रिपोर्ट (Compliance Report) लेने और उसे अदालत में दाखिल करने का निर्देश दिया है।
मामले की अगली सुनवाई 22 अगस्त को होगी, जिसमें चुनाव आयोग को अपनी रिपोर्ट पेश करनी होगी और यह बताना होगा कि अदालत के निर्देशों का किस हद तक पालन किया गया है। इस फैसले को चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
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