शिमला। हिमाचल प्रदेश के सेब बागवानों को देश की सर्वोच्च अदालत से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश में वन भूमि पर लगे सेब के पेड़ों के कटान पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। यह फैसला प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश के बाद आया है, जिसके तहत फलों से लदे हजारों पेड़ों को काटा जा रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि अब इन पेड़ों को काटा नहीं जाएगा, बल्कि इन पर लगने वाले सेब के फलों की नीलामी सरकार द्वारा की जाएगी।
फलों से लदे पेड़ों पर चल रही थी आरी
गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद, वन विभाग द्वारा ऊपरी शिमला के कई इलाकों, विशेषकर कोटखाई के चैथला और कुमारसैन के बड़ागांव में, वन भूमि पर अतिक्रमण कर लगाए गए सेब के पेड़ों को काटने की कार्रवाई की जा रही थी। इस अभियान में फलों से लदे हजारों पेड़ काटे जा चुके थे, जिसका स्थानीय लोग और बागवान पुरजोर विरोध कर रहे थे। लेकिन वन विभाग अदालती आदेश का पालन करने के लिए मजबूर था।
पूर्व उप-महापौर की याचिका पर मिली राहत
इस मामले को शिमला के पूर्व उप-महापौर टिकेंद्र सिंह पंवर और एक अन्य व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उन्होंने अपनी याचिका में दलील दी कि फलों से लदे पेड़ों को काटना पर्यावरण और आजीविका, दोनों के लिए विनाशकारी है। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सुभाष चंद्रन ने मामले की पैरवी की। उनकी दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पेड़ कटान पर रोक लगाते हुए यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया।
सरकार ने भी किया था फैसले का विरोध
राज्य की सुक्खू सरकार ने भी पेड़ काटने के इस फैसले का सार्वजनिक रूप से विरोध किया था। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और अन्य मंत्रियों ने इस निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही थी। अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सरकार के रुख पर भी मुहर लग गई है।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि वन भूमि पर लगे सेब के पेड़ों को संरक्षित किया जाएगा और उनसे होने वाली आय नीलामी के जरिए सरकारी खजाने में जाएगी। इस फैसले से न केवल हजारों पेड़ों को जीवनदान मिला है, बल्कि इससे पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ सरकारी राजस्व में भी वृद्धि का मार्ग प्रशस्त हुआ है।