देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है, लेकिन कांग्रेस में प्रत्याशियों का चयन पार्टी को पीछे धकेलता हुआ दिख रहा है। चुनाव से पहले कांग्रेस की खुलकर दिखने वाली खेमेबाजी अब टिकट आवंटन में भी दिखाई दे रही है, जिसका नतीजा है पार्टी की कई सीटों पर बगावत। कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व हरीश रावत और प्रीतम कैंप में बंटा हुआ है, जिसका असर कांग्रेस के प्रत्याशी चयन में खूब दिखा। स्थिति यहां तक आ पहुंची कि कांग्रेस आलाकमान को सिंबल आवंटन पर रोक लगानी पड़ी। चुनाव के समय यह स्थिति कांग्रेस के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा।
चुनावों से पहले जिस तरह से कांग्रेस का ग्राफ तेजी से बढ़ता दिख रहा था उसमें अचानक ब्रेक लग गई है। कारण हैं कांग्रेस के टिकट आवंटन के बाद पनपा असंतोष। कांग्रेस मुख्यालय में नेता पार्टी को बढ़ाने से ज्यादा नाराजगी जताने पहुंच रहे हैं। कांग्रेस अपने सबसे बड़े चेहरे हरीश रावत के टिकट आवंटन को लेकर असंतोष को थामने में नाकाम रही। हरीश रावत ने अचानक हरिद्वार ग्रामीण को छोड़कर रामनगर का रुख करते हुए अपने विरोधी रणजीत रावत का टिकट कटवा दिया। रणजीत चुप बैठने वाले नेताओं में शामिल नहीं हैं। जब हरीश रावत अपनी टिकट की बगावत नहीं थाम पा रहे हैं तो बतौर चुनाव संचालन समिति अध्यक्ष वह दूसरी सीटों पर असंतोष कैसे कम कर पाएंगे। हरीश कैंप की बढ़ती महत्वकांक्षा का नतीजा है कि टिकटों को लेकर इतना व्यापक असंतोष पनप रहा है। वहीं दूसरी तरफ प्रीतम सिंह खेमा भी अपने चेहतों को टिकट दिलावाने में जोराजमाइश कर रहा है।
चुनाव के दौरान कांग्रेस में खेमेबाजी और खींचतान नई बात नहीं है, लेकिन जिस तरह से इस बार इसका असर ग्राउंड पर दिखने लगा है वह कांग्रेस नेतृत्व के लिए चिंताजनक है। इसी का नतीजा है कि आलाकमान को हस्ताक्षेप करते हुए दूसरी सूची के 11 प्रत्याशियों का सिंबल आवंटन रोकना पड़ा। अब आलाकमान बची 17 सीटों पर दोबारा से मंथन करेगी। माना जा रहा है कि इन 17 सीटों के लिए हरीश और प्रीतम को दरकिनार करते हुए प्रदेश प्रभारी और चुनाव प्रभारी को तरजीह मिलेगी। अगर नामांकन से पहले कांग्रेस अपनी कलह को शांत करने में कामयाब रही तो चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी।